सुन्दर काण्ड
कथासूत्र -१
रामचरित मानस के सात कांडों में सुन्दर कांड पांचवां काण्ड
है जिसमे मुख्यतः हनुमानजी के द्वारा
लंका-दहन और सीता का संवाद लेकर श्रीराम के पास लौटने की कथा है| सुन्दर काण्ड का
नामकरण तुलसीदास ने लंका के ‘सुन्दर’-नामक पर्वत के नाम पर किया है| यह सुन्दर इस
अर्थ में भी है कि इसी से एक सुन्दर कार्य – राक्षस-वृत्ति का विनाश - का श्रीगणेश
होता है| इस काण्ड का प्रारंभ भी और कांडों की तरह संस्कृत वंदना से होता है जिसका
विशेष अर्थ यह समझना चाहिए कि संस्कृत एक देव-वाणी है जिसमे ही हम सर्वाधिक पवित्र
रूप से देवी-देवताओं की वंदना कर सकते है, क्योंकि देवताओं की भाषा भी संस्कृत ही
है| संस्कृत से ही हमारा संस्कृति शब्द बना है| कहना चाहिए, संस्कृत में ही हमारी
संस्कृति सुरक्षित है| सुन्दर काण्ड की इस प्रारम्भिक वंदना में श्रीराम को ‘माया
मनुष्यं’ कहा गया है जिसका अर्थ है ‘माया से मनुष्य-रूप में दीखनेवाले’| इसीलिए
राम-चरित के रूप में तुलसीदास का रामचरित मानस ईश्वर के मानव-रूप की ही जीवन गाथा
है| इसमें जो भी दिखाया गया है वही हम अपने और अपने समाज के जीवन में चारों ओर
देखते है| राम, सीता, भरत, कैकेयी, हनुमान. बालि, विभीषण, कुम्भकर्ण. रावण आदि सभी
प्रतीक हैं जिन्हें हम अपने जीवन में चारों ओर आज भी देख सकते हैं|
सुन्दर काण्ड की कथा का प्रारम्भ वहीं से होता है जहाँ
किष्किन्धा कांड का अंत हुआ था| हनुमान पर्वताकार होकर एक ऊँचे पर्वत पर चढ़ गए थे
जहाँ से उन्हें लम्बी छलांग लगानी थी|
सिन्धु तीर एक भूधर सुन्दर, कौतुक कूदि चढ़ेउ ता ऊपर|...
जिमि अमोघ रघुपति कर बाना, एही भांति चलेउ हनुमाना|३. ३-४|
सागर-पार लंका ४०० कोस (लगभग ८०० मील) की दूरी पर थी|
किन्तु हनुमान को तो तुलसीदास ने सुन्दर काण्ड के प्रारम्भिक श्लोकों में ही
‘अतुलित बल धामं’ कहा है| और फिर ‘हनुमान-चालीसा’ में भी (जो उन्हीं की रचना है)
कहा है – ‘प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं, जलधि लाँघि गए अचरज नाहीं’| अपनी उड़ान
में थोड़ी देर विश्राम के लिए वे एक पर्वत मैनाक पर रुक कर सुस्ताये और फिर उड़ चले|
रास्ते में उन्हें सर्पों की माता सुरसा मिली जिसने उन्हें निगल लेने की कोशिश की
पर जब असफल रही तो उनको राम का दूत जान कर असीसने लगी कि तुम सचमुच श्रीराम का
कार्य सफलतापूर्वक अवश्य करोगे| आगे हनुमान को समुद्र में एक राक्षसी दिखी जो उड़ते
हुए पक्षियों को उनकी छाया से ही उन्हें पकड़ लेती थी| लेकिन उसे भी हनुमान ने मार
डाला – ‘ताहि मारि मारुतसुत बीरा, बारिधि पार गयउ मतिधीरा’| और अंततः हनुमान लंका
पहुंचकर एक पर्वत पर जा उतरे|
सुन्दर काण्ड
कथासूत्र -२
लंका पहुंचकर पर्वत पर से ही हनुमान ने सारी लंका पर अपनी
दृष्टि फेरी|
गिरि पर चढ़ी
लंका तेंहिं देखि,कहि न जाइ अति दुर्ग बिसेषी’|
दूर में हनुमान को एक बहुत बड़ा किला दिखाई दिया जिसके
परकोटे सोने की तरह चमक रहे थे और जिनमें बहुत सारी मणियाँ जड़ी हुई थीं| चारों ओर
वन-उपवन, सुन्दर पोखरे और तालाब दिखाई दे रहे थे| अपूर्व सुंदरियां और साथ ही
भयंकर राक्षस भी चारों ओर घूमते दिखाई दे रहे थे| सभी द्वारों पर शक्तिशाली
द्वारपाल तैनात थे| हनुमान ने सोचा कि एक मच्छर जितना लघु रूप बनाकर इस विचित्र
नगरी में रात में ही प्रवेश करना ठीक होगा| लेकिन एक द्वार पर ही उन्हें लंकिनी
नाम की राक्षसी मिल गयी जिसका एक ही घूंसे में उन्होंने अंत कर दिया| उसके बाद
हनुमान एक-एक महल में जाकर सीता को ढूँढने लगे| एक महल में उन्हें रावण सोया दीखा
पर सीता वहां नहीं थीं| तभी उन्हें एक महल में भगवान का एक अत्यंत सुन्दर मंदिर
दिखाई दिया| वह विभीषण का महल था जहाँ मंदिर में हनुमान को श्रीराम के धनुष-वाण
चिन्हित दिखाई दिए| वहीं विभीषण को देख कर हनुमान को लगा कि अवश्य यह श्रीराम का
भक्त है| ब्राह्मण-रूप में हनुमान को देखकर विभीषण जान गया कि ये श्रीराम के दूत
प्रतीत होते हैं| उसने हनुमान को बताया कि सीता से उनकी भेंट अशोक-वन में होगी|
मच्छर के रूप में ही हनुमान जब वहाँ गए तो उन्होंने सीता को एक आशोक-वृक्ष के नीचे
दुर्बल, उदास बैठे देखा| वे वहीं पेड़ के पत्तों में छिप कर बैठ गए| और तभी हनुमान
ने देखा कि बहुत सी स्त्रियों से घिरा हुआ रावण वहां आया| उसने सीता को बहुत
प्रलोभन दिए और फिर बहुत धमकाया भी कि वे उसकी अंकशायिनी बन जायें| पर सीता ने
उसको फटकारते हुए कहा –‘सठ सूने हरि आनेहि मोही, अधम निलज्ज लाज नहीं तोही’| क्रोध
में रावण ने सीता को मारने के लिये तलवार खींच ली, लेकिन अपनी रानी मंदोदरी के
कहने से फिर राक्षसियों से सीता को समझाने-बुझाने को कह कर वह चला गया| राक्षसियां
तब सीता को तरह-तरह से डराने-धमकाने लगीं लेकिन उन्हीं में से एक त्रिजटा नाम की
राक्षसी ने उनसे रात के अपने सपने के बारे में कहा कि मैनें सपने में देखा कि एक
बन्दर ने लंका में आग लगा दी है, और सारी लंका धू-धू करके जल रही है -
सपने बानर लंका जारी, जातुधान
सेना सब मारी|
खर आरूढ़ नगन दससीसा, मुंडित सिर
खंडित भुज बीसा|१०.२|
सारी सेना मार डाली गयी है
और रावण नंगा, सिर मुंडाए हुए, गदहे पर सवार जा रहा है, और उसकी बीसों भुजाएं कटी
हुई हैं| यह सपना बहुत बुरा है और लगता है रावण का अंत अब आ गया है|
यह सपना मैं कहऊँ पुकारी, होइहि सत्य गए दिन
चारी|१०.४|
सुन्दर काण्ड
कथासूत्र -३
त्रिजटा राम-भक्त थी –
‘त्रिजटा नाम राक्षसी एका,राम चरन रति निपुन बिबेका’| त्रिजटा का अपशकुन-भरा सपना
सुन कर सभी राक्षसिनियाँ डर गयीं और वहां से चली गयीं| रावण के आतंक से सहमी हुई
सीता ने त्रिजटा से कहा कि अब वे जीना नहीं चाहतीं और कहीं से अग्नि मिल जाये तो
वे चिता में जल मरना चाहती हैं| इस पर त्रिजटा ने सीता को बहुत समझाया और धीरज
रखने को कहा| त्रिजटा के चले जाने के बाद पत्तों में छिपे हनुमान ने सीता को
अत्यंत व्याकुल देखकर धीरे से श्रीराम की दी हुई अंगूठी नीचे गिरा दी| सीता ने –
तब देखी मुद्रिका मनोहर, राम नाम अंकित अति
सुन्दर|
चकित चितव मुदरी पहिचानी, हरष बिषाद हृदयं
अकुलानी|१२.१|
सीता सोचने लगीं – ये तो
श्रीराम की ही अंगूठी है| यह लंका में कैसे आयी? उनको तो कोई भी मार नहीं सकता!
तभी हनुमान ने पत्तों में से धीरे से पूरा प्रसंग सीता को सुनाया, और फिर नीचे आकर
सीता के हरण और उसके बाद की सारी कहानी उन्हें
सुनायी| कहा कि अब शीघ्र ही श्रीराम लंका आकर रावण का युद्ध में वध करेंगे और सीता
को अपने साथ वापस ले जायेंगे| फिर भी जब सीता को एक साधारण वानर की बातों पर भरोसा
नहीं हुआ तो तुरत हनुमान ने अपना विशाल रूप प्रकट किया जिसे देखकर सीता को पूरा
विश्वास हो गया कि हनुमान की सारी बातें सच हैं| सीता से आज्ञा लेकर फिर हनुमान एक
सामान्य बन्दर की तरह उस उपवन में पेड़ों पर कूद-कूद कर फल खाने लगे और डालों को
तोड़ने लगे| जब रखवाले राक्षसों ने ललकारा तो हनुमान ने उनमें से कईयों को मार
डाला| तब कुछ रखवालों ने जाकर रावण के दरबार में उसको इसकी खबर दी कि एक बहुत
विशाल बन्दर सीताजी वाले उपवन में घुस कर तोड़-फोड़ कर रहा है और उसने अनेक राक्षसों
को मार भी डाला है| यह सुन कर क्रुद्ध रावण ने अपने बहुत से वीर योद्धाओं के साथ
अपने पुत्र अक्षय कुमार को वहां भेजा| लेकिन देखते-ही-देखते हनुमान ने सभी
राक्षसों सहित अक्षय कुमार को भी मार डाला| -
सुनि सुत बध लंकेस रिसाना, पठएसि मेघनाद
बलवाना|
मारसि जनि सुत बांधेसु ताही, देखिअ कपिहि
कहाँ कर आही|१८.१|
इसके बाद अगले अंक में
मेघनाद द्वारा हनुमान को ब्रह्मपाश में बांधकर रावण के दरबार में ले जाने की कथा
आती है|
[सुन्दरकाण्ड उत्तरार्द्ध पढ़ें अगले मंगलवार को]
इस ब्लॉग पर उपलब्ध पूर्व सामग्री का विवरण
२०१७
१६ मई : सुन्दर काण्ड (पूर्वार्द्ध)
९ मई : किष्किन्धा काण्ड (सम्पूर्ण)
२ मई : अरण्य काण्ड (कथा-सूत्र ५ – ७)
२४ अप्रैल : अरण्य काण्ड (कथा-सूत्र १ – ४)
१७ अप्रैल : अयोध्या काण्ड (कथा-सूत्र ६ – १०)
१० अप्रैल : अयोध्या काण्ड (कथा-सूत्र १ – ५)
४ अप्रैल : दुर्गा सप्तशती (अध्याय ८ – १३)
२९ मार्च : दुर्गा सप्तशती (अध्याय १ – ७)
२८ मार्च : दुर्गा सप्तशती ( परिचय-प्रसंग)
१९ मार्च : मानस बालकाण्ड (६-१२, उसके नीचे
१-५)
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