कविता का झरोखा - ८
लॉकडाउन
हाँ भय है
हाँ अलगाव है
हाँ घबराहट-भरी खरीददारी है
हाँ बीमारी है
हाँ मौत भी है
लेकिन
लोग बताते हैं वुहान में इतने
वर्षों के शोर-शराबे के बाद
चिड़ियों की चहचहाहट फिर सुनाई दे
रही है
लोग कह रहे हैं कुछ हफ़्तों के
सन्नाटे के बाद
आसमान में अब उतना घना धुंध नहीं
रहा
भूरा नीला और एकदम साफ़ है
लोग कह रहे हैं असीसी की गलियों
में
लोग एक दूसरे के साथ गा रहे हैं
सभी खाली चौराहों पर
अपनी-अपनी खिड़कियाँ खोल कर
ताकि जो लोग अकेले हैं
आस-पास के परिवारों के गीत सुन
सकें
लोग कहते हैं पश्चिमी आयरलैंड का
एक होटल
मुफ्त खाना बाँट रहा है और घरबंदी
में पहुंचा रहा है
आज एक युवती जिसे मैं जानता हूँ
अपने नंबर वाला परचा बांटने में
व्यस्त है
पूरे पड़ोस में ताकि जो बुज़ुर्ग हैं
वे जरूरत पर किसी को बुला सकें
आज सभी गिरजाघर, सिनागोग, मंदिर और
मस्जिद
स्वागत करने को खुले हैं, शरण देने
को
बेघर, बेसहारा और बीमार को
सारी दुनिया में लोग धीमे होकर
सोचने लगे हैं
सारी दुनिया में लोग एक नई सचाई
में जाग उठे हैं
कि हम वास्तव में कितने बड़े हैं
कि हमारा कितना कम अख्तियार रह गया
है
उन चीजों पर जो हमारे लिए मानी
रखती हैं
प्यार पर
ताकि हम प्रार्थना करें और याद
करें
हाँ भय है
लेकिन अब नफ़रत को नहीं होना है
हाँ अलगाव है
लेकिन अब अकेलापन को नहीं होना है
हाँ घबराहट-भरी खरीददारी हो रही है
लेकिन अब छिछोरापन को नहीं होना
है
हाँ बीमारी है
लेकिन मन की कोई बीमारी नहीं होनी
है
हाँ मौत भी है
लेकिन प्यार सदा फिर-फिर पनप सकता
है
जागो अब तुमको कैसे जीना है यह तय
करो
आज गहरी सांस लो
सुनो, अपनी घबराहट के कारखानों का शोर
चिड़ियों ने फिर चहचहाना शुरू कर
दिया है
आसमान बहुत साफ़ हो गया है
वसंत आ रहा है
और हम सदा प्यार के घेरे में हैं
अपनी आत्मा की खिड़कियाँ खोल दो
और अगर खाली चौराहों के पार छू
नहीं सकते
तो गाओ
-
भाई रिचर्ड हेंड्रिक, एक कपूचिन पुजारी का १३
मार्च, २०२० का लिखा गीत |
असीसी- इटली का (संत फ्रांसिस का)
शहर | कपूचिन – इसाई धर्म की शाखा|
अनुवाद © मंगलमूर्त्ति
चित्र : सौजन्य गूगल छवि संग्रह