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Monday, September 23, 2019

कविता का झरोखा : ५ 























विभाजन : ऑडेन १९६६

कोई पूर्वाग्रह तो कतई नहीं था उसके मन में
जब वो आया था विभाजन करने उस मिशन में
उस मुल्क का जहां उसने कभी कदम भी नहीं रखा था
और जहां की दो कौमों में बिलकुल नहीं पटती थी
जिनके मौला तो जुदा थे ही, खान-पान भी अलग थे,
लंदन ने उसे ताकीद की थी - वक्त बहुत कम है -
किसी बहस-मुबाहसे, समझ-बूझ, मेल-मिलाप की
गुंजाइश बिलकुल नहीं; बस विभाजन ही एक रास्ता बचा है
वायसराय की चिट्ठी ही साफ़ कहती है कि उनके साथ
तुम जितना कम दीखो, उतना ही अच्छा, और इसी लिए
तुम्हारे रहने का ठिकाना भी अलहदा रखा गया है
हम तुम्हें चार जज देंगे - दो हिन्दू दो मुसलमान -
राय-मशवरे के लिए, गोकि आखिरी फैसला तुम्हारा होगा

अकेले एक महल में बंद, हत्यारों से हिफाज़त की खातिर,
पुलिस के पहरे में दिन-रात,बगीचे में लगातार गश्त के बीच,उसने काम शुरू कर दिया,
लाखों-करोड़ों की किस्मत का फैसला,
नक़्शे सारे-के-सारे ज़माने पुराने, और मर्दुमशुमारी
के सब कागज़ात भी वैसे ही गड़बड़-सड़बड,
जिनकी तफ्तीश के लिए भी अब वक्त कहाँ बचा,
और न उन इलाकों की कोई ज़मीनी जांच-पड़ताल ही
                                 अब मुमकिन रह गई,
और बमुरौवत मौसम भी उतना ही गर्म, कोढ़ में खाज
पेचिश के दौर, और बार-बार फरागत की आवाजाही,
खैर, सात हफ़्तों में किसी तरह काम पूरा हुआ,
सरहदें तय हुईं, और एक महाद्वीप - अच्छे या बुरे
किसी तौर पर दो हिस्सों में तकसीम हो गया

और अगले ही दिन वो शख्स रवाना हुआ लंदन के लिए
और जाते ही वहाँ सब कुछ भूल भी गया, जैसा एक अच्छे
वकील के साथ होता ही है - और अब दुबारा वो क्यों लौटे,
डर का मारा बेचारा - क्लब के साथियों से बोला,
अब तो वहां जाना - मतलब गोली खाना !

आप नीचे दिए गए लिंक पर ऑडेन की मूल अंग्रेजी कविता और उसका एक इंटरव्यू भी पढ़िए और यहाँ मेरे द्वारा किया गया उस ऐतिहासिक कविता का यह  हिंदी अनुवाद भी |
          
 अंग्रेजी के आधुनिक युग के दो महान कवियों – टी. एस.इलियट और डब्ल्यू. एच. ऑडेन - के बारे में निश्चित रूप से कहना कि वे इंग्लैंड के हैं या अमेरिका के - बहुत कठिन है, हालांकि अमेरिका में इस पर बहुत जोर दिया जाता है कि अमेरिकी साहित्य की अपनी इयत्ता है, और इस पर थोड़ी खींच-तान ज़रूर है कि इलियट ऑडेन अमेरिकी साहित्य के आधुनिक कवि हैं |


ऑडेन का जन्म इंग्लैंड में हुआ और ३२ वर्ष की उम्र में वह अमेरिका चला गया तो फिर वहीँ का हो रहा, यद्यपि जीवन के अंतिम वर्ष में वह लौट कर इंग्लैंड ज़रूर गया और ऑस्ट्रिया के पास विएना में खरीदे अपने घर में ही उसका देहांत हुआ, जहाँ एक कब्रगाह में उसे दफ़न किया गया है |

और ठीक इसके उलट इलियट का जन्म,  उसकी पढ़ाई सब अमेरिका के  न्यू इंग्लैंड प्रदेश में हुई, लेकिन वह भी २८ वर्ष की उम्र में इंग्लैंड चला गया तो फिर वहीँ का हो गया, लेकिन तब तक उसकी बहुत सारी कविताएँ लिखी जा चुकी थीं, और वह एक अमेरिकी कवि के रूप में प्रसिद्धि पा चूका था | मातृभूमि और प्रवास - यानि दोनों का  अटलांटिक महासागर के आर-पार, एक ओर से दूसरी ओर का भौगोलिक प्रवर्त्तन, लगभग एक ही उम्र में – इसका दोनों के काव्यरचना से क्या सम्बन्ध है, यह भारतीय पाठकों के लिए विशेष उत्कंठा का विषय हो  सकता है | फिर एक और समान्तर पक्ष है कि दोनों महाकवियों का भारत के प्रति क्या दृष्टिकोण रहा – और यह  भी एक अत्यंत रोचक विषय हो सकता है | इलियट ने तो भारतीय संस्कृत वांग्मय और दर्शन का विस्तार से अध्ययन किया था और उसकी सबसे प्रसिद्ध और कालजयी काव्य-कृति ‘द वेस्टलैंड’ की तो परिणति ही उपनिषद् के मन्त्र  ‘ दा ददाति दध्यम’ के साथ होती है |

ऑडेन का सम्बन्ध भारत से उतना गंभीर और सघन तो नहीं रहा, लेकिन इलियट से एक कदम आगे बढ़ कर ऑडेन ने आधुनिक भारत के गंभीर ऐतिहासिक संकट – भारत-विभाजन  से जुड़ी एक पूरी कविता  उस विषय पर लिख दी |

और इस कविता की भी एक कहानी है | ऑडेन ५ वर्ष (१९५६-’६१) ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी में पोएट्री का प्रोफेसर रहा था | इन्हीं दिनों कभी उसकी भेंट सर सिरिल रैडक्लिफ से हुई, जो इंग्लॅण्ड का एक प्रख्यात क़ानून-वेत्ता था, और जिसने ही माउंटबैटन के बुलावे पर आकर भारत-विभाजन का नक्शा तैयार किया था | रैडक्लिफ जिन्ना का मित्र भी था और उसके सुझाव पर भारत के विभाजन से ठीक कुछ पहले बिलकुल पहली बार दिल्ली आया था | रैडक्लिफ ८ जुलाई, १९४७ को दिल्ली आया था, ऐटली और माउंटबैटन की सहमति के बाद, और उसको वाइसराय हाउस परिसर में ही एक पहरे वाले बंगले में ठहराया गया था | यह पूरा प्रसंग ऑडेन की उस मूल अंग्रेजी कविता के साथ इस लिंक पर पढ़ा  जा सकता है –





उसको सिर्फ  ५ हफ़्तों का वक्त मिला था पंजाब और बंगाल – दो बड़े प्रान्तों में विभाजन रेखा खींचने के लिए जिसके लिए कई वर्ष लगने चाहिए थे | और जब इतनी हड़बड़ी में उसने इस काम को अंजाम दिया भी और १५ अगस्त से ५-६ दिन पहले ही अपनी रिपोर्ट माउंटबैटन को दी तो वाइसराय ने उसको अपने लॉकर  में बंद रख दिया, क्योंकि वह चाहता था रिपोर्ट को सार्वजनिक करने से पहले अंग्रेजी फौज को सुरक्षित देश से बाहर कर लिया जाय, नहीं तो उनको बहुत खतरा हो सकता था | जबकि १५ अगस्त (विभाजन दिवस) से हफ्ते-भर पहले भी यदि यह रिपोर्ट सार्वजनिक कर दी गई होती, तो पाकिस्तानी और हिन्दुस्तानी क्षेत्रों के बीच जनसंख्या की अदला-बदली में खून-खराबे की गुंजाइश बहुत कम ही सकती थी | लेकिन माउंटबैटन के लिए इस नरसंहार की कोई अहमियत भला क्यों होती ?


ऑडेन ने ये सब सवाल रैडक्लिफ से अपनी मुलाक़ात में पूछे थे | और उसकी ‘पार्टीशन’ कविता में इसी पर गहरी चोट की गयी है | 

दोनों चित्र : सौजन्य गूगल छवि संग्रह 

आप मेरे दो और ब्लॉग पर आ. शिवपूजन सहाय से सम्बद्ध सामग्री  (और कुछ मेरी रचनाएँ भी) पढ़ सकते हैं -
vibhutimurty.blogspot.com & murtymuse.blogspot.com  (विशेषतः मेरी हिंदी-अंग्रेजी कविताएँ)|

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