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Friday, August 17, 2018



जयंती : १२५ 
भोजपुरी कहानी 

कुंदन सिंह-केसर बाई  
शिवपूजन सहाय

दूनों के उठत जवानी रहे।ओह जवानी पर भी आइसन चिक्कन पानी रहे कि देखनिहार के आंखि बिछिलात चले। गांव के लोग कहे कि बरम्हा का दुआरे जब सुधराई बंटात रहे तब सबसे पहिले ईहे दूनों बेकती पहुंचले। सचमुच दूनों आप-आपके सुग्घर बिआह का बेर मांड़ो में देखनिहार का धरनिहार लागल रहे। घर-परिवार में केहुना रहे। दुइएप्रानी से आंगन-घर गहगहाइल बुझाइल। जब एगो बनूक छतियावे त दोसर ओकर तमतमाइल चेहरा निहारि-निहारि के मुसुकाए आ भई फरफरावे लागे। एगी जब बंसुरी बजावे बइठे त दोसर चिटुकी बजाइ-बजाइ के गुनगुनाए लागे। एगो जब कसरति करे लागे त दोसर दांते ओठ चापि के हुंकारी देत चले। एगी जब खाये बइठे त दोसर बेनिया डोलाइ के संवाद पूछे।
एक दिन आसिन के पूनो के अंजोरिया में अपना अंगना में पटिहाटि पर सुजनी डसाइ के दूनों बतरस के आनन्द लेत रहले कि एही बीच में एगो कहलस, 'हम तोहरा के बहुत पेयार करीला।" ई सुनि के दोसरकी बोललि, "हमहं तोहरा पेयार के दुलार करीला 'वोह दुलार के भी हम सिंगार करीला। जब-जब हम तोहरा दुलार के सिंगरले बानी, तोहरा जरूर इयाद हीई।
माघ के रिमझिम मधेरिया में, फागुन के फगुनाहट से मस्ताइल रंगझरिया में, चइत-बइसाख के खुब्बे फुलाइल फुलवरिया में, जेठ के करकराइल दुपहरिया में, असाढ़-सावन के उमड़ल बदरिया में, भादो के अधिरतिया अन्हरिया में, कुआर- कातिक के टहाटह अंजोरिया में, - अगहन-पूस के कपकपात सिसकरिया में जब-जब तू हमरा प्यार के है, दुलार कइल हम वोह दुलार के आइसन सिंगार कइलीं कि तोहार आंखि मंडराए लागल बाटे इयाद?'
अतना सुनिके टहो दुनुकि-दुनुकि के जम्हाई लेवे लागलि, आइसन रंगढंग देखि के ई कहलस कि 'हमनी का भगवान के दोहल सब सुख भोगत बानी, बाकी अपना देस के कवनी सेवा अबहीं ले ना संपरल, छत्री का कोखी जनम ले के हमनी का अपना जाति के कवनो गुन दुनिया के ना देखवलीं। हमरा इसकृल के साथी सब कहेली कि जब से तोहार बिआह भइल तब से तूं आइसन मउग हो गइल जे दिन-राति घरे में घुसल रहेल।"
'एह खातिर हम का करी? सरकारे आपन करनी निहारी। पहिले रउरे उसुकाईले, पाछे लागीले देसभक्की के गीत गाइके अपना साथियन के ओरहन सुनावे रावा जवन काम करब तवना में हमरा साथ देबही के परी। रावा झंडा ले के निकसीं त देखीं जे हमहं अपने का संगे निकसत बानी कि ना हमहं छत्री के बेटी हई।
हमरा नइहर के सखी के मरद अपना संगे हमरा सखिओ के जेल में ले गइल बाड़े रउरो हमरा के जहां चाहीं तहां ले चलीं। रावा साथे हम आगिओ में कूदब त तनिको आंच ना लागी। रडरे संगे तरुआरिओ के धार पर हंसतेहसत चल सकीला।
बाकी रउरा बिना हम कतहीं ना जा सकीं। पहिले सरकारे अपना के सुधारी, हमत पिछलगुई हई। मरद के परछहीं मेहरारू हवे। मेहरिया के पाछ-पाछ मरदा रसियाइल-डोरियाइल फिरी त कवन अभागिन होई जे ओकरा के लुलुआवत?"
"तोहार बात हम काटत नइखीं, बाकी सभ दोस हमरे नइखे!"
'अच्छत बिहान होखे द हमहीं पहिले तिरंगा झंडा ले के निकसब।"
'तब त हमार छाती सिकन्दरी गज से डेढ़ गज के हो जाई बात नइखीं बनावत
'तोहरा बात बनावे से अधिका बात चिकनावे आवेल।"
अच्छा त काल्हु जब सरकारी चरन चउकठलांघी त देखल जाई हमार उमंग-तरंग।'
सन् उनइस सौ बेयालिस ईसवीं में भोजपुरियो इलाका अइसन अगयाइल रहे कि जेने देखीं तेने उतपाते लड़के कहीं संडक कटात रहे, कहीं टेसन आ मालगोदाम लुटात रहे, कहीं थाना-डाकखाना फुंकात रहे, कहीं भाला-बरछा-फरसा मंजात रहे, कहीं मल्लू अइसन मुँहवाला टामी लोग के लाटा कुटात रहे, कहीं रेल के लाइन उखड़ात रहे, कहीं कवनी पुलिस-दरोगा ओहारल डोला में लुका के परात रहे, कहीं मकई का खेत में लड़ाई के मोरचा बन्हात रहे, जहां सूई ना समाप्त रहे तहां हेंगा समवावल जात रहे, सगरे अन्हाधुन्हिए बुझात रहे।
कुंदन-केसर के देखादेखी गांवों के लोग हमेसा कमर कसले रहसु। सभे ईहे बिनवत-मनावत रहे कि गोरन्हि के राज उलट जाउ, गोरा अफसर लोग जेने-तेने बिललात फिरत रहसु दूनों के साहस आ उतसाह त काम करते रहे, दूनों के रूप के जादू सबसे बेसी मोहिनी डाले।
जेने दूनों के दल चले तेने हंगामा मच जाइ। दूनों बेकत के बोली सुनला से लोगन के मन ना अघात रहे। जनता पर रूप आ कठ के टोना अइसन चलल कि अंगरेजी सरकार के माथा टनके लागल, दूनों के नाम वारंट कटल। जनता दूनों के पलक-पुतरी अइसन रच्छा करे लागल। जब थाना-पुलिस के गोटीना लहलि त फउजी गोरनिह के तइनाती भइल। तबो गोरा लोग के छक्का छूट गइल, बाकी दूनों के टोह ना मिलल।
जवना दिन दूनों अपना घर के असबाब एने-ओने हटावे खातिर गांवें पहुंचले तवने दिन पीठियाठोक गोरो | पहुंचले स।
दूनों अपना घर के खलिहाइ के भीतरे बतियावतसुनि के दूनों के कान खड़ा हो गइल। कुन्दन कच्छ कसि के बनूक में टोटा भरे लागल, केसर झटपट मियान से तरुआरि खींचि के कमर में आंचर बान्हि लेलस। दूनों हृह करत धड़फड़ बाहर निकलले त केवार खुलते गोरा अकचकाइ गइलेस।
कुन्दन तीनि जाना के ठावें पटरा कइ देलस आ केसरो दुइ जाना के माथ काटि के दुरुगा-भवानी अइसन छरके लागलि। गोरा लोग के जबले भटका खुले-खुले तवले दूनों के मार-काट से केहू के हाथ कटा के गिरि परल आ। केहू के कपार फाटि गइल आ केहूछती में छेद ले के गिरल कहरे लागल। अतना छत्रियांव दिखवला का बाद दूनों खूनी बहादुर खेत रहले, गोली लगला पर केसर घुमरी खात कुन्दन का देह पर जा गिरले। अतने में गांव-जवार के लोगनि के गोहरि जुटल, बाकी गोरा आपन पांची लासि लेके पराइ गइलेसक।
कुन्दन-केसर के लोथ उठाइ के लोग गंगाजल से नहवावल, चन्दन चढावल, फ्लमाला से सजावल, अंजुरी के अंजुरी फ्ल बरिसावल, अगरबत्ती-कपूर के आरती देखावल, दूनीं के जयजयकार से आकाश गुंजावल, गांवें- गांव जलूस घुमाइ के दूनों साहसी सहीदन के पूजा करावल आ घरे-घरे देवी लोग लोर ढरेि द्यारि अर्ध चढवल, चारू ओर पंचमुखे ईहे सुनाइजे अइसन मरन भगवान बिरले के देले।

भोजपुरी पत्रिका 'अंजोर' (पटना) में प्रकाशित ( १९६१)

(C) आ.शिवपूजन सहाय स्मारक न्यास 



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