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Wednesday, December 23, 2020

 

गंगा प्रसाद विमल

हिंदी के वरेण्य कवि एवं साहित्यकार श्री गंगा प्रसाद विमल का पिछले दिसंबर में श्रीलंका के भ्रमण में एक मोटर दुर्घटना में दुखद निधन हो गया था | यह एक अत्यंत हृदयद्रावक दुर्घटना हुई जिसमें उनके जामाता और नतिनी का भी देहांत हो गया | मेरा विमलजी से बहुत निकट का परिचय नहीं था, लेकिन कभी-कभार की दो तीन मुलाकातों में उनसे जब भी मिलना हुआ, बराबर ऐसा लगा हम सदा से परिचित रहे हों | दो-तीन मुलाकातें याद आती हैं – पहली और दूसरी, दोनों दिल्ली में ही हुई थीं | पहली भेंट एक जापानी कविता गोष्ठी में हुई थी, जहां मैंने और विमलजी ने भी जापानी से हिंदी में अनूदित अपनी कुछ कविताओं का पाठ किया था | यही उनसे मेरी पहली मुलाकात थी | एक प्रसिद्ध पिता का पुत्र होने के कारण और थोडा-बहुत मेरे यदा-कदा हिंदी लेखन के कारण भी मुझको बहुत से लोग यों भी जानते हैं | उस जापानी काव्य-गोष्ठी में भी विमलजी मुझसे बड़ी आत्मीयता से मिले, जैसे हम कभी के परिचित हों | उनसे मेरी   दूसरी मुलाकात – जेएनयू में आयोजित, २००८ में, मेरी ही अनुवादित पुस्तक, जापानी उपन्यास ‘चाबी’ के लोकार्पण में हुई, जिसमें डा. मेनेजर पाण्डेय और राजेंद्र यादवजी भी उपस्थित थे, और राजेन्द्र यादव ने ही उस पुस्तक का लोकार्पण किया था और पुस्तक के सफल अनुवाद की अभ्यर्थना की थी |

मूल जापानी उपन्यास का नाम भी ‘कागी’ था जो वहां १९५६ में प्रकाशित हुआ था और उसका अंग्रेजी में हॉवर्ड हिबेट का किया अनुवाद १९६१ में ‘द की’ नाम से प्रकाशित हुआ था | उपन्यास का विषय दाम्पत्य-जीवन के संश्लिष्ट मनोविज्ञान से जुड़ा था, और उन्हीं दिनों उसका मेरा किया अनुवाद ‘ज्योत्स्ना’ पत्रिका में धारावाहिक छपा था | फिर इधर आकर २००८ में मैंने उसे पुस्तकाकार प्रकशित किया | अपने वक्तव्य में मैंने इसी पुनरानुवाद की जटिल प्रक्रिया पर अपने कुछ विचार प्रस्तुत किये थे | मूल भाषा से सीधे किसी दूसरी भाषा में अनुवाद और अनूदित भाषा से पुनरानुवाद का प्रश्न अनुवाद के  भाषा-वैज्ञानिक पहलू से जुड़ा और इसमें मूल कृति के भाव-जगत का सम्प्रेषण किस सीमा तक या किस रूप में प्रभावित होता है, मैंने अपने लिखित वक्तव्य में इसी प्रश्न पर विचार किया था | लोकार्पण-कर्त्ता राजेन्द्र यादव जी ने किसी हद तक मेरे विचारों का समर्थन किया, और बाद के वक्ताओं ने भी इस जटिल प्रश्न पर अपने विचार प्रस्तुत      किए |         

इस अवसर पर विमल जी से ये मेरी दूसरी मुलाक़ात थी, और बूफे में एक साथ बैठ कर हम देर तक अनुवाद के विषय में काफी देर तक बातें करते रहे, क्योंकि विमल जी की अभिरुचि भी अनुवाद कार्य में बहुत गहरी थी और मेरे वक्तव्य से वे बहुत प्रभावित हुए थे |

 

विमलजी से मेरी अंतिम भेंट भी, २०१८ में बीएचयू में १२५वें सपादशती के उपलक्ष्य में एक त्रि-दिवसीय सेमिनार में हुई थी, जो राहुलजी और शिवपूजन सहाय पर आयोजित था | इस अंतिम अवसर पर भी अपने पिता के साहित्य पर – विशेष कर उनके आंचलिक उपन्यास ‘देहाती दुनिया’ पर - उनके साथ कुछ अन्तरंग बातचीत का समय मिला | मैं विमल जी के व्यक्तित्त्व और कृतित्त्व से तो पूर्व-परिचित था ही, पर उनको राहुलजी पर सुनने का मुझे वहीँ सुअवसर मिला था और फिर अपने पिता और राहुलजी के आत्मीय संबंधों पर ही उनसे कुछ देर बातें होती रहीं थीं | हर मुलाकात में मेरी यह भावना दृढ हुई कि विमलजी मृदुलता और सौजन्यता के मूर्त्त रूप थे |

विमल जी असमय चले गए, किन्तु उन्होंने साहित्य-भारती का भण्डार अपनी प्रचुर  सृजनशीलता से समृद्ध किया, और शिक्षा और शोध के क्षेत्र में भी अपना मूल्यवान योगदान देकर गए | उनके असमय निधन पर अपने ब्लॉग में मैंने उनको अपनी श्रद्धांजलि उन्हीं की एक कविता का अनुवाद करके समर्पित किया | उस दिन जेएनयू की प्रो. उनीता सच्चिदानंद ने भी श्रद्धांजलि-स्वरुप फेसबुक पर उनका स्मरण उनकी उसी हिंदी कविता से किया | दिल्ली की दोनों मुलाकातों में उनीताजी ही कारक बनी थीं, क्योंकि वे वहां जापानी-भाषा की ही वरिष्ठ प्रोफ़ेसर हैं | विमल जी की एक छोटी-सी कविता है – ‘रूपांतर’ जो  अपनी सहजता में उस सघन संवेदना के कवि को हमारी आँखों में साकार कर देती है, और अपने इस लघु-पुनर्स्मरण में आज उनकी स्मृति को उसी अनुवाद से मेरी यह श्रद्धांजलि समर्पित है |


CHANGE

History

Myths

Are all false 

The only truth

Is the tree

Till it bears fruit

It is truth

 

When it ceases to give

Either leaves

Or shadow

Its bark goes shrivelling

And one day it ends


Morphs into history

Into myth

And changes from truth

Into a lie

Quietly

Text & Photo
(C) Dr BSM Murty

Visit my two other blogs : murtymuse.blogspot.com (for my poems) & vibhutimurty.blogspot.com ( for my prose writings)

Contact: bsmmurty@gmail.com WhatsApp: 7752922938

Wednesday, August 26, 2020

 

अनूदित अंग्रेजी कहानी

मंगलमूर्त्ति     

जोए की दीदी  

जोए अपनी बरसाती की सीढ़ियों पर बैठा था | उसके हाथों में बेसबॉल खिलाडियों की तस्वीरों की एक छोटी सी गड्डी थी | वह बड़े ध्यान और गर्व से उन तस्वीरों को देखने में मशगूल था, और कुछ सोचते हुए उन्हें एक-दूसरे में फेंट रहा था | जोए अभी दस साल का रहा होगा | उसकी नज़र में बेसबॉल खिलाड़ियों से ज्यादा शानदार और अहमियत वाले लोग दुनिया में और कोई नहीं होते होंगे |

-       क्या हो रह है जोए? – सामने की खिड़की से उसकी माँ ने झाँक कर पुकारा |

-       कुछ नहीं ! – तस्वीरों पर आँख गडाए ही जोए बोला |

-       तो जाओ देखो तुम्हारी दीदी कहाँ है | उसको बुला लाओ | - माँ ने जोर से कहा |

-       हन्ना दीदी ?

-       और कौन सी दीदी है तेरी?

-       मुझे क्या मालूम | - जोए ने अन्यमनस्क-सा उत्तर दिया |

-       अब रख उन तस्वीरों को, और जा दौड़ कर बुला ला उसे | - माँ ने लगभग डांटते हुए कहा |

जोए ने घूम कर माँ की और देखा और मुंह बना लिया | बेसबॉल खिलाड़ियों के अपने उस स्वप्न-जगत से अपने को जबरन खींच कर बाहर लाने में उसको थोडा समय लगा | धीरे-धीरे चल कर वह माँ के पास गया |

-       क्या माँ ?

-       जा देख, हन्ना कहाँ है |

-       क्या हुआ ?

-       हुआ यही कि शाम हो चली | खाने का वक़्त हो गया है | पापा तुम्हारे भी आते ही होंगे, और उनके आने से पहले उसको यहाँ होना चाहिए |

जोए ने झुंझलाहट में बेस बॉल खिलाड़ियों की तस्वीरों की गड्डी को जैसे-तैसे अपनी पतलून की जेब में ठूंसा जिससे उसकी जेब भी चौकोर फूल गई |

-       और साथ ही आ जाना तू भी, जैसे वो मिले | अब अँधेरा हो गया है | - माँ ने जोर देकर कहा |

सूरज तो कब का डूब चुका था, और अँधेरा घना होता जा रहा था | जोए धीरे-धीरे एक-एक कर सीढ़ियों से नीचे उतरा और बेमन का एक-एक कदम चलते हुए हन्ना को ढूढने चला | उसके पतलून की जेब बेस बॉल खिलाड़ियों की तस्वीरों की गड्डी से अब भी फूली लग रही थी |

-       अरे, अब दौड़ कर जा न ! – माँ ने फिर कहा |                                              

अनजाने ही जोए की चाल तेज़ ही गई, जैसे किसीने पीछे से धक्का दिया हो | उस कतार के सारे मकानों को पार करके कोने से वह दूसरी ओर मुड गया, लेकिन जल्दी ही यह बात उसके दिमाग से बिल्कुल उतर गई कि वह अपनी बहन हन्ना को ढूँढने निकला था | तभी एक मकान के सामने उसके कुछ दोस्त बैठे मिल गए | बस जोए वहीँ बैठकर उन सबों की तस्वीरों से अपनी गड्डी की तस्वीरों को मिलाने-बदलने में मशगूल हो गया | इस बार अदला-बदली में उसको कुछ और नई तस्वीरें मिल गईं  और उन्हें भी उसने अपनी जेब में ठूंस लिया | आगे बढ़ने पर स्कूल से आगे अब वह पहाड़ी से नीचे की ओर उतरने लगा | उधर की सड़कें कुछ सुनसान थीं जिनके दोनों ओर ऊंचे-ऊंचे घने पेड़ थे, जिससे अँधेरा कुछ और बढ़ गया था |

रबर के जूते पहने जोए चुपचाप निरुद्द्येश्य आगे चलता जा रहा था | उसके हाथ उसकी जेब में रक्खी तस्वीरों पर थे, और वह आस-पास के मकानों में जली रोशनियों को देखता आगे बढ़ता जा रहा था | एक खड़ी कार के पीछे की ओर नीचे दुबकी बिल्ली पर उसकी नज़र पड़ी जिसकी आँखें पन्ना-जैसी हरी-हरी तेज़ चमकीं | नज़दीक आने पर उसकी ओर देखती हुई बिल्ली हलके-से भीतर और दुबक गई | जोए ने एक बार धीरे से पैर पटका और बिल्ली सुर्र से भागकर अँधेरे में गायब हो गई |

कुछ और मकानों को पार करते हुए जोए उन काले घने पेड़ों की ओर बढ़ा | अनजाने ही वह झुकी डालों और झुरमुटों की पत्तियां तोड़ता आगे चला जा रहा था | एक कोने पर मुड़ने के बाद वह फिर अचानक तेज़ कदमों से पीछे लौट पड़ा और एक छोटे-से पारचून की दूकान में घुस गया | एक पेनी में उसने एक और तस्वीर खरीदी जो गुलाबी मुलायम च्विंगम के साथ लिपटी मिलती थी | जल्दी से उसे खोलकर च्विंगम को तो उसने मुंह में डाला, और तस्वीर को बड़े ध्यान से देखने लगा | यह नई तस्वीर थी जो उसके पास नहीं थी | उसने सभी तस्वीरें फिर से अपनी जेब से निकालीं, और उस नई तस्वीर को उनमें मिलाकर हिफाज़त से जेब के हवाले किया | फिर जोर-जोर से च्विंगम चबाता वह दूकान से बाहर आ गया, और खूब चबाते-चबाते जब उसका सारा रस चूस लिया तो जोर से सांस खींचकर उसने ‘फुट’ से उसकी सिट्ठी को दूर फेंक दिया जो चकरघिन्नी खाती सड़क के किनारे चली गई |

आगे जाने पर पेड़ों का एक छोटा-सा झुरमुट था, जैसे इस इलाके में चारों ओर जहाँ-तहां बिखरे हुए और भी बहुत से झुरमुट थे | उधर अँधेरा भी ज्यादा घना था | ऊँचे-ऊँचे पेड़ों और घनी झाड़ियों के बीच के रास्ते पर जोए चुपचाप आगे बढ़ता जा रहा था | वहां आस-पास भी बहुत से ऐसे झुरमुट थे जहाँ की चीजें अब साफ़ नहीं दिखाई पड़ती थीं | झुरमुटों के बीच के संकरे रास्ते पर बड़ी सतर्कता से बढ़ते हुए वह अगल-बगल आँखें गडा-गडा कर देखता आगे चल रहा था |

तभी उसे एक दबी-सी खिलखिलाहट सुन पड़ी | वह एक दम रुक गया | उत्सुकता-भरी दृष्टि से वह चारों और देखने लगा | एक ओर की झुरमुटों की तरफ से ही वह आवाज़ आ रही थी | लेकिन उधर बिलकुल अँधेरा था |

जोए सांस रोक कर सुनता रहा | इधर-उधर चलने की उसको कुछ आवाज़ मिली | धीमी-धीमी कुछ फुसफुसाहट भी सुन पड़ी जिससे जोए की उत्सुकता और बढ़ गई | बिना कोई आवाज़ किये वह झुक कर उसी ओर धीरे-धीरे बढ़ने लगा, और जितना ही वह आगे बढ़ता उसके दिल की धड़कन तेज़ होती   जाती | इसी बीच न जाने कब उसकी जीभ उसके दांतों तले अपने-आप दब गई थी | नज़दीक होने पर आवाजें साफ़ होने लगीं | हंसी अब रुक चुकी थी | फुसफुसाहट भी धीमी और घबराई हुई लग रही थी |

जोए घुटनों पर हाथ टिकाए वहीँ रुक गया | तेज़ नज़रों से झुरमुटों के बीच वह चारों ओर देखते हुए धीरे-धीरे आगे सरकने लगा | झाड़ियों की डालें और पत्ते उसके बदन से लग कर चुपचाप दबती जा रही थीं, जैसे-जैसे अपनी सांस रोके वह कुछ और आगे बढ़ रहा था | उसके हाथ अब भी अपनी जेब पर थे  जिसमें उसकी सब तस्वीरें अब भी सुरक्षित थीं | अचानक वह ठिठक कर रुक गया | झुरमुट के आगे एक पेड़ था जिसकी डालें काफी नीचे झुकी हुई थीं | वहीँ उसी पेड़ की डाल के सहारे, उसने देखा, एक लड़का और एक लड़की अधलेटे खड़े एक दूसरे को चूम रहे थे | जोए झुरमुट के किनारे तक सरक गया जिसके बाद कुछ पथरीली ज़मीन थी | और वहीं उस पेड़ से लगे वे दोनों एक दूसरे के आगोश में बंधे थे | जोए तुरत धीरे-से वहीँ लेट गया और सांस रोके सब कुछ देखता रहा |

कुछ देर में दोनों के होंठ चुम्बन से अलग हुए, लेकिन वे एक दूसरे की बांहों में ही कसे रहे | जोए तुरत पहचान गया – ये तो हन्ना थी ! उसे बड़ा अचरज हुआ और तभी उसे याद आया वह तो हन्ना को ही ढूँढने निकला था, और माँ ने हन्ना को जल्दी घर लिवा लाने को कहा था | माँ की बात याद आते ही उसने चाहा की हन्ना से माँ की बात कहे, पर वह रुक गया और मंत्रमुग्ध सब कुछ देखता रहा | वे फिर एक दूसरे को चूम रहे थे – उसकी हन्ना दीदी और उन्हीं के पड़ोस का वह लड़का,जिसका नाम था बिग जैक और जिसे वह खूब जानता था | वे दोनों एक-दूसरे की बांहों में पूरी तरह कसे हुए थे, और उनका सारा बदन एक-दूसरे में बिलकुल गुंथा हुआ था |

एक बार फिर वे अलग हो गए और तब बिग जैक ने हन्ना के कानों में कुछ कहा | हन्ना ने सर झुका लिया, कुछ बोली नहीं | बिग जैक ने फिर उसे कस कर चूमा और अपनी बाहों में लेकर पेड़ के तने के सहारे लिटा दिया | उसके भारी बदन की ओट में हन्ना बिलकुल छिप गई | वह हन्ना पर झुक गया और जोए ने देखा, हन्ना की बाहें बिग जैक के चारो ओर लिपट कर, उसकी पीठ और गर्दन से बंध गईं | एक बार और एक हलकी-सी फुसफुसाहट हुई और फिर बिग जैक का हाथ धीरे-धीरे नीचे चलता गया और हन्ना के स्कर्ट को ऊपर उठाने लगा | स्कर्ट धीरे-धीरे ऊपर, और ऊपर उठता गया, और अब हन्ना की पूरी जांघें साफ़ दिखने लगीं – उजली-उजली और मांसल, एक दूसरे-से कस कर भिंची हुई |

जोए उसी झुरमुट में पड़ा यह सब कुछ देखता रहा | उसके अन्दर एक अजीब-सी गर्मी छाने लगी थी जिसे वह समझ नहीं पा रहा था और जो रुकने के बदले और बढती ही जा रही थी | अब सब कुछ देख लेने की भूखी-सी उसकी आँखें दर और घबराहट से फटी जा रही थीं | उसे मालूम था, या उसको लगा वह सब कुछ जानता है कि वे लोग क्या कर रहे थे | उसके दोस्त उसे बताते थे कि उनको इन सब बातों की जानकारी है कि यही है वह सब कुछ जिसे जोए अब फैली-फैली आँखों से देख रहा था | हन्ना कमर के नीचे बिलकुल नंगी थी | बड़ी मुश्किल से, बिलकुल न चाहते हुए भी, शर्म में डूबता-उतराता जोए वहां से अपनी आँखें हटा नहीं पाया | बिग जैक का पूरा शरीर हन्ना को ढंके हुए था और एक अजीब से लय  में हलके-हलके आगे-पीछे हो रहा था, बिना किसी आवाज़ के |

जोए ने अब अपनी आँखें मूँद लीं, बांहों में मुंह छिपा लिया और धीरे से अपना माथा ज़मीन पर
टेक लिया | उसे लगा, अब वह और कुछ देखना या जानना नहीं चाहता | उसकी आँखें खुलना भी चाहती थीं लेकिन वह उन्हें ज़बरदस्ती भींचे रहा | उसका  पूरा शरीर एक अजीब-सी जलन से सींझ रहा था   जैसे |

जोए दौड़ रहा था– झुरमुटों को चीरता - बेतहाशा दौड़े जा रहा था – रोता, सुबकता, अपनी जेब की तस्वीरों को जोर से पकडे हुए, जिनमें से बहुत-सी तस्वीरों की पत्तियां अब कहीं गिर कर, बिखर कर, खो चुकी थीं | और यह उसने तब जाना जब उस अँधेरे से निकल कर वह रोशनी में पहुंचा | पीछे मुड़ने पर जब उसने जेब टटोल कर देखा तो उसने पाया कि उसकी सारी तस्वीरें कहीं गिर कर खो चुकी थीं , अब हमेशा-हमेशा के लिए |

© मंगलमूर्त्ति

चित्र सौजन्य : कैरोलिन लोगन, फ्लोरिडा (यू.एस.ए.)

Monday, July 27, 2020

कविता का झरोखा : १०

ब्रिटिश नाटककार और कवि हैरोल्ड पिंटर की सात कविताएँ  

“कविता-लेखन के समय रचना-कर्म की आधारभूमि के विषय में मेरी चेतना बहुत धुंधली रहती है, और सृजन कार्य अपने अनुशासन और नियमों के अनुसार स्वतः चलता है – एक प्रकार से, मुझको एक माध्यम बनाकर |                                                                                               - हैरोल्ड पिंटर, ब्रिटिश नाटककार   

1.मौत

लाश कहाँ मिली

किसको मिली ये लाश

लाश क्या मर चुकी थी जब मिली

लाश कैसे मिली

 

किसकी थी ये लाश

कौन था इस लाश का बाप या भाई या बेटी

या चाचा या बहन या माँ या बेटा

इस लावारिस लाश का


लाश मृत थी जब इसे फेंका गया था

क्या इसे फेंका गया था

किसने इसे फेंका था

 

यात्रा पर जाने के लिए लाश नंगी थी या कपड़ा पहने

किस आधार पर तुमने इस लाश को लाश घोषित किया

तुमने क्या इस लाश को एक लाश घोषित किया


कितनी अच्छी तरह तुम इस लाश को जानते थे

कैसे जाना तुमने कि यह लाश लाश है

 

क्या तुमने इस लाश को नहलाया

इसकी दोनों आँखें बंद कीं

इसको मिटटी में दफनाया


इसे क्या यों ही फेंक दिया

क्या तुमने इस लाश को चूमा

  

 

2.बूढी हो रही होगी मौत

 

बूढी हो रही होगी मौत

लेकिन उसकी ताकत बरक़रार है

वह तुम्हे निरस्त्र कर देगी  

अपनी पारदर्शी रोशनी से

और कांइयां इतनी है वो


कि तुम्हें कुछ पता नहीं होगा

कहाँ तुम्हारे इंतज़ार में है वो

तुम्हारी इच्छा से बलात्कार करने को

और तुम्हें नंगा करने को

जब तुम तैयार हो रहे हो

हत्या करने को

लेकिन मौत तुम्हे छूट देती है

कि अपने घंटे तुम तय कर लो


जब तक वो चूसती है तुम्हारा सारा शहद

तुम्हारे सुन्दर सुन्दर फूलों से 

[अप्रैल, २००५]

 

3.मुलाक़ात

 

रात लगभग मर चुकी है

पुराने मरे हुए सब देख रहे हैं


नए मरे हुओं को

उनकी ओर जाते हुए

 

हलके से धड़कता है दिल

जब मरे हुए गले मिलते हैं

उनसे जो बहुत पहले मरे थे

और उनसे जो हाल में मरे हैं

और उनकी ओर आ रहे हैं


 

वे रो रहे हैं और चूम रहें हैं

दुबारा मिलते हुए एक दूसरे से

पहली और आखिरी बार 

[२००२]

4.अपनी पत्नी से

मैं मर चुका था और अब जी गया

तुमने जो मेरा हाथ थाम लिया  


 

अंधा ही मरा मैं

तुमने जो मेरा हाथ थाम लिया

 

तुमने मरते हुए देखा मुझको

और पा लिया मेरा जीवन

 

तुम्ही थीं मेरा जीवन


जब मैं मर गया था

 

तुम्ही हो मेरा जीवन

इसलिए मैं जिन्दा हूँ     

[जून, २००४]



5.देखने वाला

एक खिड़की बंद होती है और एक पर्दा नीचे होता है

रात काली है और वो लाश की तरह स्थिर है

चाँदनी का एक अचानक झोंका जैसे कमरे में आया हो

उसके चहरे को रोशन करने – जो चेहरा मैं नहीं देख सकता

मुझे मालूम है वो अंधा है

लेकिन वो मुझको देख रहा है   


[९ अप्रैल, २००७]


6.कविता

 

रोशनियाँ चमकती हैं|

अब क्या होगा?

 

रात घिर चुकी|

बारिश थम गई|


अब क्या होगा?

 

रात और घनी होगी|

वह नहीं जानता

मैं क्या कहूँगा उससे|

 

जब वह जा चुका होगा

उसके कान में मैं कुछ कहूँगा


मैं कहूँगा जो मैं कहना चाहता था

उस मुलाक़ात में जो होने को थी

जो अब हो चुकी है|

 

लेकिन उसने कुछ नहीं कहा|

उस मुलाक़ात में जो होनी थी

वह अभी केवल मुड़ा है मुस्कुरा कर

और फुसफुसाकर बोल रहा है:

‘मैं नहीं जानता

अब आगे क्या होगा|’ 

               [१९८१]  

7. भूत

मुलायम उंगलियाँ महसूस हुईं गले पर मुझको

लगा कोई मेरा गला दबा रहा है

होंठ जितने कठोर थे उसके मीठे उतने ही लगे

लगा कोई चूम रहा है मुझको

मेरे सभी मर्मस्थली हड्डियां टूटने लगीं

मैंने उस दूसरे की आँखों में आँखें गड़ा दीं

मैंने देखा यह मेरा कोई जाना चेहरा था

एक चेहरा जितना प्यारा उतना ही मनहूस

वह मुस्काया नहीं और न वह रोया  

उसकी आँखें बड़ी-बड़ी थीं और चमड़ा सफ़ेद

वह मुस्काया नहीं और न मैं रोया

मैंने बस हाथ उठाकर उसका गाल छुआ

                                   [१९८३]

 


हेरॉल्ड पिंटर [
1930-2008] का रचना-काल 50 वर्षों से अधिक में प्रसरित है, और यद्यपि वे बीसवीं सदी के प्रमुख नाटककारों में गिने जाते हैं, प्रारम्भ में उन्होंने कविता-लेखन से ही अपना रचनात्मक जीवन प्रारम्भ किया था | उनके एक नाटक ‘ऐशेज़ टू ऐशेज़’ (1996) का मेरा हिंदी अनुवाद ‘दोआबा’(पटना, जून,2010) में प्रकाशित हो चुका है| उनके कई अन्य प्रसिद्ध नाटक हैं – ‘द रूम’,‘द बर्थडे पार्टी’,’द डंब वेटर’(1957),‘द होम कमिंग’ (1964), आदि| वे एक अत्यंत सफल नाटककार, निर्देशक एवं अभिनेता भी थे | उनके नाटकों को कुछ समीक्षकों ने ‘कॉमेडी ऑफ़ मिनेस’ (‘आपदा की कामदी’) अथवा ‘स्मृति नाटक’ भी कहा है | उन्होंने अपने नाटकों में एक-दो शब्दों के निरंतर संवाद अथवा शब्द-हीन ध्वनि-हीन संवादों का बहुतायत से प्रयोग किया है | उन्हें 2005 में साहित्य का नोबेल पुरस्कार प्राप्त हुआ था| उनका श्वास-नली के कैंसर से २००८ में देहांत हुआ |

 

यहाँ ‘मौत’ नामक उनकी कविता के लिए एक विशेष कलात्मक स्थापत्य जॉर्ज तोकाया द्वारा रचित सात अस्पताल के बिस्तरों पर लिखी यह कविता है | तोकाया की कलात्मक प्रतिपत्ति थी कि शाब्दिक संवाद भाषा का एक प्रतिरोध है | संवाद मुक्त प्रवाहित होने वाले बिम्बों की एक अविच्छिन्न श्रृंखला होता है | तोकाया ने अपनी कृतियों में सदा अभाषिक बिम्बों और दैहिक भाषा का प्रयोग किया जो पिंटर के नाट्य-प्रयोगों के समानांतर ही एक कला-प्रयोग है | हेरॉल्ड पिंटर की कविताओं में भी यही सृजन-शिल्प रूपाकृत होता है |

अधुनातन विश्व-साहित्य की कुछ अनूदित कविताओं, कहानियों, नाटक आदि की मेरी एक पुस्तक यथाशीघ्र प्रकाशित होकर आने वाली है | हिंदी और अंग्रेजी में मेरी कविताओं आदि की कुछ पुस्तकें  मैंने अभी स्वयं प्रकाशित की हैं, आप मित्रगण उन्हें अमेज़न से मंगा कर पढ़ें |  

यहाँ प्रस्तुत आलेख और अनुवाद (C) डा.मंगलमूर्ति 

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