फांसी
जॉर्ज ऑरवेल
बर्मा में बरसात की एक भीगी सुबह थी | हमलोग फांसी वाले कैदियों के जानवरों के पिंजड़े जैसे लोहे के छड लगे सेल के सामने खड़े थे | दस-दस फीट के सेल में केवल एक लकड़ी के तख़्त और पानी पीने के बर्त्तन के सिवा और कुछ भी नहीं था | उनमें कम्बल में लिपटे कुछ कैदी बैठे थे जिन्हें फांसी होनी थी |
एक कैदी को सेल से बाहर लाकर छः जेल-वार्डर फांसी के लिए तैयार कर रहे थे | वह एक बौने कद का हिन्दू था जिसका सिर मुड़ा था | दो वार्डरों के हाथ में संगीन लगे राइफल थे, बाकी उसे हथकड़ी पहना कर, उसमें एक जंजीर फंसा कर, अपनी बेल्ट में बाँध रहे थे | वे सब उस कैदी को बिलकुल सट कर घेरे हुए थे – लगता थे किसी जिंदा मछली को पकड़े हुए हों कि कहीं वह हाथ से फिसल कर पानी में न चली न जाय | और वह कैदी काठ की तरह बिना किसी हरकत के चुपचाप खड़ा था |
आठ बजा और
बैरकों की ओर से एक बिगुल बजा – दूर से पतली-सी आवाज़ में | जेल सुपरिंटेंडेंट जो
हमलोगों से अलग थोड़ी दूर पर खड़ा था - अपनी छड़ी से कंकरीली जमीन को कुरेदता – बिगुल
की आवाज़ सुन कर उसने हलके से अपना सर उठाया – बोला : “जल्दी करो, अभी तक तो उसको
लटक जाना चाहिए था |”
हेड जेलर
फ्रांसिस एक मोटा-ताज़ा द्रविड़ियन था, सफ़ेद वर्दी में, सुनहरी फ्रेम का चश्मा पहने
हुए – बोला : “हाँ,हाँ, सर, जल्लाद इंतज़ार में होगा | हम चल ही रहे हैं |”
“जल्दी करो |
कैदियों का नाश्ता तभी होगा जब यह काम ख़तम होगा |”
हमलोग
फांसी-घर की ओर चल पड़े | दो-दो वार्डर कैदी के दोनों ओर चल रहे थे | दो और कैदी की
बाहें जोर से पकडे उसको सहारे से धकेलते हुए चल रहे थे | मजिस्ट्रेट के साथ हमलोग
उनके दस कदम पीछे थे | अचानक न जाने कहाँ से एक कुत्ता बीच में जोर-जोर से भूंकता
हुआ, अपने पूरे बदन को ऐंठता हुआ चला आया, जैसे इतने लोगों को एक साथ देख कर वह
मौज में आ गया हो | और देखते-देखते वह कैदी तक आ पहुंचा जैसे उसका मुंह चाटने वाला
हो | सुपरिंटेंडेंट चिल्ला उठा –“ये कमबख्त अभी कहाँ से आ गया | भगाओ इसको |” जैसे
ही एक वार्डर उसको भगाने लगा, वह नाचता हुआ, और जोर-जोर से भूंकता हुआ, भाग गया |
कैदी यह सब कुछ इस तरह देखता रहा जैसे यह भी फांसी के काण्ड का ही एक हिस्सा हो |
फांसी का घर
अभी लगभग चालीस गज आगे था | मैं पीछे से बस कैदी की नंगी गेहुएं रंग की पीठ देखता
चल रहा था और वह कुछ उचकती हुई चाल में चुपचाप आगे चलता जा रहा था | बारिश से भीगी
हुई जमीन पर उसके पावों के छाप उग आते थे | एक जगह जोर से पकडे होने पर भी पानी के
एक छोटे से गड्ढे को देख कर वह थोडा बगल हो गया | तभी मुझको एकाएक महसूस हुआ एक
स्वस्थ, सजग जीवन को ख़तम करना देना क्या होता है; एक पूर्ण स्वस्थ प्रवाहमान जीवन
को अचानक नष्ट कर देने का रहस्य क्या होता है | वह एक जीता-जागता इंसान था – उसकी सभी
इन्द्रियां काम कर रही थीं, पाचन-क्रिया बदस्तूर चल रही थी, नाखून बढ़ रहे थे – एक
निरर्थक निरंतरता में | उसकी आँखें उस पीली भीगी
ज़मीन और जेल की भूरी दीवाल को बराबर देख रही थीं | उसके दिमाग को उस पानी
के छोटे से गड्ढे की भी चेतना थी | हम सबलोग अभी साथ चल रहे थे, देख रहे थे, सुन
रहे थे – अपने सामने की दुनिया को पूरी तरह महसूस कर रहे थे | लेकिन बस दो मिनट
में, एक झटके के साथ, हम में से एक हमेशा के लिए नहीं रहेगा |
फांसी-घर
मुख्य जेल में एक ओर बना था, जिसके आस-पास काफी घास और जंगली पौधे उग आए थे | उसके
तीन तरफ दीवारें थी और लकड़ी के एक चबूतरे पर दो खम्भों के ऊपर एक धरन लगी थी
जिसमें एक रस्सी लटक रही थी | वहीं चबूतरे के नीचे एक पके बालों वाला जल्लाद जेल की ही वर्दी
पहने फांसी देने वाले लीवर की बगल में खड़ा था | हमलोगों के वहां पहुंचते ही उसने
झुक कर सलाम किया | फ्रांसिस के इशारे पर वार्डरों ने कैदी को पकड़ कर सीढ़ियों पर
चढ़ाया | तब जल्लाद ने भी ऊपर चढ़ कर कैदी के गले में अच्छी तरह रस्सी फंसा दी |
हमलोग पांच गज
दूर खड़े थे | सभी वार्डर भी फांसी-चबूतरे के चारो ओर तैनात रहे | और जैसे ही कैदी
के गले में फंदा पड़ा, वह जोर-जोर से ‘राम,राम,राम,राम!” रटने लगा – एक सुर से,
जैसे मंदिर की कोई घंटी बजने लगी हो | बगल से उस कुत्ते के रोने की भी दबी-सी आवाज़
उसमें मिल रही थी | जल्लाद ने कैदी के सिर पर जल्दी से एक काला नकाब पहना दिया,
लेकिन उस नकाब के अन्दर से भी धीमी-धीमी आवाज़ – “राम,राम,राम, राम, राम !”- आती
रही |
जल्लाद नीचे
लीवर के पास आ कर खड़ा हो गया | सुपरिंटेंडेंट सिर झुकाए अपनी छड़ी से ज़मीन कुरेदता
रहा, जैसे कैदी के राम-नाम की गिनती में लगा हो कि कब वह पचास या सौ तक पहुंचे |
सबके चेहरे फ़क पड़ गए थे | राइफल की संगीनें भी हलके-हलके काँप रही थीं | हमलोग
कैदी की ‘राम-रटना’ सुन रहे थे जैसे कि हर रटना जीवन का एक और अतिरिक्त क्षण हो!
एकाएक जैसे सुपरिंटेंडेंट
ने तय कर लिया हो – झटके से सिर उठा कर उसने अपनी छड़ी से इशारा किया और चिल्ला कर
कहा – “ चलो”! एक झटके की आवाज़ हुई और सब
कुछ शांत हो गया | कैदी गायब हो गया था और रस्सी लगातार ऐंठने लगी थी | हमने जाकर
देखा तो कुँए में कैदी का बदन - किसी पत्थर की तरह निष्प्राण - झूल रहा था, ऐंठती
हुई रस्सी से लटकता हुआ | सुपरिंटेंडेंट
ने अपनी छड़ी से बदन को टो-टा कर देखा तो बदन थोडा और घूमने लगा | कुँए
से बाहर निकल कर सुपरिंटेंडेंट ने राहत की लम्बी सांस छोड़ी |
फांसी के
कैदियों के सेल की तरफ लौटने पर हमने देखा पंगत में बैठे कैदियों को नाश्ता परोसा
जा रहा था |
मेरी बगल के
एंग्लो-इंडियन लड़के ने हलकी मुस्कराहट के साथ मुझसे कहा – “ जानते हैं सर ! जब
हमने उसको बताया कि उसकी अपील खारिज हो गई, डर से उसने फर्श पर पेशाब कर दिया |
फ्रांसिस बोला –“चलिए सर, सब कुछ ठीक-ठाक हो गया इस बार | लेकिन हर बार ऐसा नहीं
होता | एक बार तो डॉक्टर को नीचे जाकर नब्ज़ देखने पर कैदी की टांग जोर से खींचनी
पड़ी थी | ओफ़ोह ! एक बार का तो मुझे याद आता है एक कैदी बड़ा उपद्रव करने लगा था, और
जब हम उसको लेने गए थे तो वह किसी तरह अपने सेल में ऊपर की कंडी में जा चढ़ा था |
आप विश्वास नहीं करेंगे सर, उसको खींच कर नीचे लाने में छः-छः वार्डर लगे रहे – एक-एक
पैर में तीन-तीन वार्डर !”
फ्रांसिस की
इस बात पर सबलोग हंसने लगे और मैं भी अनमना-सा हंसने लगा |
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(बर्मा,१९३१)