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Sunday, June 30, 2019




कविता का झरोखा : २ 
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रॉबर्ट फ्रॉस्ट
1874 - 1963


‘स्टॉपिंग बाइ द वुड्स ऑन अ स्नोई ईवनिंग’ 







जंगल के किनारे

मैं जानता हूँ शायद किसके हैं ये जंगल
हालांकि गाँव में ही है उसका घर
पर वह नहीं लखेगा मैं रुका हूँ यहाँ
देखने बर्फ से भरता उसका जंगल |

अजीब लगता होगा मेरे नन्हें से घोड़े को
यहाँ रुकना, कोई घर नहीं आसपास किसान का,
बस जंगल और बर्फ, जमी झील के बीच,
साल की इस सबसे अँधेरी सांझ में |

अपनी लगाम की घंटियों को हिलाता है वह,
जानने को तनिक कि कोई भूल तो नहीं कहीं,
बस एक ही और स्वर है सहज हवा का
और तिरते बर्फीले रेशों का यहाँ |

कितने प्यारे हैं ये जंगल, घने और अँधेरे,
पर मुझको तो पूरे करने हैं वादे,
और मीलों जाना है सोने से पहले,
और मीलों जाना है सोने से पहले ...

[मूल कविता : रॉबर्ट फ्रॉस्ट | अनुवाद : मंगलमूर्ति]


स्टॉपिंग बाइ द वुड्स ऑन अ स्नोई ईवनिंग’


रॉबर्ट फ्रॉस्ट की यह सर्वाधिक प्रसिद्ध और लोकप्रिय कविता है –  जो १९२३ में उसके काव्य-संग्रह ‘न्यू हैम्पशायर’ में प्रकाशित हुई थी | कविता का यह शीर्षक जिसका सरल अर्थ है -  ‘रुकना जंगल किनारे एक बर्फीली शाम को’ – उस कविता की कोई पंक्ति नहीं है, यद्यपि अपने-आप में यह पंक्ति उस सम्पूर्ण कविता के भाव को अंतर्विष्ट कर लेती है |
 रॉबर्ट फ्रॉस्ट का जन्म १८७४ में अमेरिका के पैसिफ़िक-महासागर-तटीय नगर सैन फ्रान्सिस्को में हुआ था लेकिन पिता के देहांत के बाद उसका परिवार अमेरिका के पूर्वीय न्यू इंग्लैंड प्रदेश में चला आया जहाँ उसके पूर्वज सत्रहवीं शताब्दी में इंग्लैंड से आकर पहले-पहल बसे थे | वहीं मैसाच्युसेट्स के लॉरेंस शहर में रॉबर्ट फ्रॉस्ट की प्रारम्भिक शिक्षा हुई, और बचपन के उसके वे दिन बहुत गरीबी और अभाव में बीते | बाद में उसके पितामह ने न्यू हैम्पशायर के डेर्री नगर के पास खेती की बहुत सारी  ज़मीन खरीदी और काफी दिनों तक फ्रॉस्ट हारवर्ड यूनिवर्सिटी में पढ़ाई के साथ-साथ मुख्यतः खेती-बारी में ही लगा रहा | यद्यपि उससे भी पर्याप्त उपार्जन न होने के कारण उसका परिवार १९१२ में इंग्लैंड चला गया | फ्रॉस्ट का रुझान प्रारम्भ से कविता की ओर था, और तब तक की लिखी उसकी कविताओं के दो छोटे-छोटे काव्य-संग्रह  इंग्लैंड में ही प्रकाशित हुए जिससे अंग्रेजी काव्य-जगत में एकबारगी उसको प्रसिद्धि मिली |

प्रथम विश्व युद्ध के प्रारम्भ में फ्रॉस्ट का परिवार फिर अमेरिका में न्यू हैम्पशायर लौट आया और वहां फिर खेती-बारी का सिलसिला और कॉलेज में पढ़ाने का दौर शरू हुआ | एक सफल आधुनिक कवि के रूप में अब फ्रॉस्ट को अमेरिका में भी पर्याप्त ख्याति मिल चुकी थी और १९२४ में जब उसका नया काव्य-संग्रह ‘न्यू हैम्पशायर’ प्रकाशित हुआ तब उस पर पहली बार उसे पुलित्ज़र पुरस्कार प्राप्त हुआ, जो फिर बाद में तीन बार और उसके तीन नए काव्य-संकलनों के लिए उसको मिला | इन्हीं दिनों एक लम्बे समय तक – १९२१ से १९६२ तक फ्रॉस्ट वरमौंट के रिप्टन नगर में रहा और ऐन आर्बर की मिशिगन यूनिवर्सिटी में  पढाता रहा, जहाँ जीवन के अंतिम दिनों तक वह कार्यरत रहा | अमेरिका में १९१५ से १९६२ के बीच उसके कई काव्य संग्रह प्रकाशित हुए और उसको अनेक सम्मान प्राप्त होते रहे | फ्रॉस्ट की मृत्यु २९ जनवरी, १९६३ को बोस्टन में हुई, और उसको वरमोंट में दफनाया गया | उसकी कब्र पर उसकी ही लिखी एक स्मरणीय पंक्ति खुदी हुई है  – “ इस दुनिया के साथ मेरा झगडा एक प्रेमी का रहा” ( I had a lover’s quarrel with the world)| फ्रॉस्ट के सम्मान में रिप्टन के निकट के एक पहाड़ की चोटी को उसके नाम से अभिहित किया गया | अमेरिका के विभिन्न प्रदेशों में जहाँ-जहाँ फ्रॉस्ट रहा उसकी स्मृति में स्मारक स्थल और जंगले के क्षेत्र सुरक्षित रखे गए हैं, जहाँ पर्यटकों के घूमने की व्यवस्था की गयी है | यहाँ चित्र में डेर्री के पास जंगल का एक वैसा ही क्षेत्र है जहाँ फ्रॉस्ट घूमा करता था | कहते हैं कि फ्रॉस्ट की कविताओं में इन जंगलों के पेड़ों की गंध समाई             हुई होती है |
 
‘स्टॉपिंग बाइ द वुड्स ऑन अ स्नोई ईवनिंग’ की रचना १९२२ में हुई थी जब फ्रॉस्ट हैम्पशायर के छोटे से कसबे डेर्री में रहता था | फ्रॉस्ट की कविताओं में हैम्पशायर अंचल के चित्र भरे पड़े हैं  और उस क्षेत्र की भाषा और उसकी लय की गूँज उनमें स्पष्ट सुनी जा सकती है | कहते हैं, फ्रॉस्ट जब एक दिन रात-भर अपनी लम्बी कविता ‘न्यू हैम्पशायर की रचना करता रहा था, तब सुबह में अचानक कुछ ही मिनटों में उसने इस अमर कविता की पंक्तियाँ लिख डाली थीं | अपनी इस कविता के विषय में उसने स्वयं लिखा  है – ‘यही मेरी सबसे यादगार कविता होगी’ |

फ्रॉस्ट की मान्यता थी कि कविता अनुवाद से परे की रचना होती है | किन्तु स्पष्टतः इस वक्तव्य में कविता की भाषा पर अधिक बल दिया गया है | कविता स्वयं भाषा से परे एक रचना होती  है | भाषा कविता के अवतरण का एक विशिष्ट रूप अवश्य होती है, किन्तु वह कविता के सम्प्रेषण को परिसीमित नहीं करती | इसका एक कारण  है उसकी संगीत से निकटतम संवर्त्तिता | संगीत की भाषा का व्याकरण, उसकी लिपि भिन्न हो सकती है, किन्तु उसका संप्रेषित प्रभाव निश्चय ही अभिन्न होता है | थोडा आगे बढ़ कर फ्रॉस्ट की ही बात को समझें तो जहाँ कविता अनुवाद से परे होती है, वहीं संगीत अनुवाद से पूर्णतः मुक्त होता है |

 फ्रॉस्ट की इस कविता -‘स्टॉपिंग बाइ द वुड्स ऑन अ स्नोई ईवनिंग’ – को हम कविता और संगीत की पार्श्ववर्त्तिता के एक श्रेष्ठ उदहारण के रूप में देख सकते हैं, जहाँ कविता का अर्थ शब्दों के एक संगीत में समलय  हो जाता है | फिर हम उसकी स्थूल शब्दावली की पगडंडी पर चलते हुए एक अलौकिक अनुभव-जगत में पहुँच जाते हैं जहाँ यथार्थ और कल्पना एकमेक हो गए हैं | गाँव,जंगल, तुषारपात, बर्फ की जमी झील, शाम का गहराता अँधेरा, थथमे घोड़े के गले की घंटी का अचानक स्वर  – ये सारे बिम्ब संगीत के एक विशिष्ट स्वरोत्कर्ष का निर्माण करते हैं जिनमें जीवन की पूरी कहानी ध्वनित होती सुनाई पड़ती है, और इस संगीत-स्वर का चरम कविता की अंतिम दुहराई गयी पंक्ति में एक अमिट गूँज उत्पन्न करता है –

‘और मीलों जाना है सोने से पहले
और मीलों जाना है सोने से पहले...”

फ्रॉस्ट की इस कविता को हज़ार बार पढ़ कर भी हम यही कह सकते हैं कि श्रेष्ठ कविता अगर अनुवाद से परे होती है, तो वह केवल अनुभव की बस्तु होती है, किसी अर्थ-विश्लेषण की नहीं |

चित्र : सौजन्य गूगल छवि संग्रह 

अनुवाद-आलेख (C) डा. मंगलमूर्त्ति

इस श्रंखला की पहली कड़ी रोबेर्ट ब्राउनिंग की कविता 'पॉरफिरियाज़ लवर' तथा इस ब्लॉग की अन्य पूर्व सामग्री को पढ़ने के लिए नीचे OLDER POSTS पर क्लिक करते हुए पीछे जा सकते हैं | 

  
   

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