गंगा बाबू
काल के प्रवाह में, समाज में कुछ ऐसे व्यक्तियों का भी प्रादुर्भाव होता है जो
अपने समय में अपना अत्यंत प्रभावशाली जीवन व्यतीत करते हैं, उनके कार्य-कलाप भी
अत्यंत लोक-प्रभावी एवं महत्त्वपूर्ण होते हैं, लेकिन इतिहास की इबारत में उनका
जीवनाख्यान अंकित होने से छूट जाता है, और वह अपनी पीढ़ी की परतों में ही दबा जैसे
मिट जाता है | बिहार में वैसे भी ऐसा अनेक क्षेत्रों में बहुधा होता रहा है |
स्वाधीनता संग्राम के दौरान समाज में और हिंदी साहित्य के क्षेत्र में बिहार में ऐसे
अनेक नाम हैं जो अपनी पीढ़ी के साथ ही लोक-स्मृति से विलुप्त हो गए | कुछ ऐसे ही
नाम हैं – ब्रजकिशोर प्रसाद, मजहरुल हक, पं. सकल नारायण शर्मा; संगीत के क्षेत्र
में पं. रामचतुर मल्लिक; कला के क्षेत्र में ईश्वरी प्रसाद वर्मा, आदि |
इन्हीं में एक और अत्यंत
महत्त्वपूर्ण नाम जुड़ता है – बाबू गंगा शरण सिंह का जो समाज, राजनीति और साहित्य
के बीच एक सेतु की तरह रहे| साहित्य के वृत्त से– शिवपूजन सहाय, बेनीपुरी, सुधांशु और
दिनकर से वे उसी सहृदयता से जुड़े रहे जिस तरह राजेंद्र प्रसाद और जेपी जैसे कांग्रेसी और समाजवादी खेमे के नेताओं
से | गूगल पर उनके विषय में अत्यल्प सूचनाएं हैं, लेकिन वे ३-४ सत्रों में
राज्यसभा के सांसाद भी रहे, और साहित्यिक पत्रकारिता के क्षेत्र में बेनीपुरी आदि
के साथ जुड़े रहे | तीस के आंदोलित दशक में बेनीपुरी के साथ ‘युवक’ नामक क्रांतिकारी साहित्यिक पत्रिका का सह-सम्पादन करते
रहे, और आजीवन बिहार की पत्रकारिता में – जनता, योगी, नवराष्ट्र, नई धारा, आदि साहित्यिक पत्रिकाओं से जुड़े रहे
| बेनीपुरी ने ‘मुझे याद है’ शीर्षक अपनी संस्मरण-पुस्तक में ‘युवक’ के दिनों की विस्तार से चर्चा की है जब गंगा बाबू ने ‘युवक’ के प्रकाशन के लिए अपनी पत्नी के स्वर्णाभूषणों को बेच कर
पैसे इकट्ठे किये थे. और किस मुफलिसी में पटना कॉलेज के सामने एक साधारण सी कोठरी
में बेनीपुरी के साथ, अपनी रसोई बनाकर, बर्त्तन धोकर और चटाई पर एक ही रजाई में सो
कर रातें बिताई थीं |
गंगा बाबू पर एक स्मृति-ग्रन्थ का प्रकाशन होना चाहिए था | उषाकिरण जी ने बताया कि ऐसा एक ग्रन्थ महिला चरखा समिति, पटना, से प्रकाशित भी हुआ था | लेकिन गंगा बाबू के यथोपलब्ध सम्पूर्ण लेखन और उनपर लिखी गई संस्मरण-सामग्री का एक सुलभ पुस्तकाकार प्रकाशन भी अवश्य होना चाहिए | बालक, युवक, जनता, योगी, नवराष्ट्र, नई धारा आदि बिहार के उन दिनों के पत्रों में ढूँढने पर पर्याप्त सामग्री अभी भी मिल सकती है, यदि कोई इस दिशा में सघन प्रयास करे | आशा है इसकी ओर ध्यान अवश्य दिया जायेगा |
सभी चित्र (C) डा. मंगलमूर्ति
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