Followers

Wednesday, April 21, 2021

 
ध्यान दें:कृपया पता में : H-302 के स्थान पर H-701 कर लें |









‘देहाती दुनिया’- प्रसंग : १  

शिवपूजन सहाय का गाँव ‘रामसहर’

मंगलमूर्त्ति

बात लगभग सवा सौ साल पुरानी है | बक्सर से कोई १५ किमी दक्षिण में एक गाँव है – ‘उनवांस ’ | वहीँ मुंशी वागीश्वरीदयाल के परिवार में सं. १९५० में श्रावण कृष्ण त्रयोदशी – अंग्रेजी तिथि, ९ अगस्त, १८९३ -  को एक बालक का जन्म हुआ था | उससे पहले वागीश्वरी दयाल की दो-तीन संतानों की अल्पायु में ही मृत्यु हो चुकी थी | बहुत मन्नत-मनौतियों और पूजा-पाठ के बाद मुंशी वागीश्वरीदयाल के परिवार में इस बालक का जन्म हुआ था – डुमरावं-राज्य के राजगुरु पं. दुर्गादत्त परमहंस के हवन-कुंड से प्राप्त ‘विभूति’ के प्रताप से | परमहंसजी  ने ही नवजात शिशु का नामकरण किया था  –‘शिवपूजन’ | यही बालक आगे चल कर ‘हिंदी-भूषण’ शिवपूजन सहाय के  नाम से आधुनिक हिंदी-साहित्य में विख्यात हुआ | अपनी आत्म-संस्मरणात्मक पुस्तक ‘मेरा बचपन’ (१९६०) में अपने बचपन की यह पूरी कहानी शिवपूजन सहाय ने स्वयं विस्तार से लिखी  है |

शिवपूजन सहाय की अमर कृति ‘देहाती दुनिया’ का ‘रामसहर’ उनका यही अपना गाँव ‘उनवांस’ है | और ‘देहाती दुनिया’ के  कथा-नायक - ‘भोलानाथ’ के बचपन की कहानी वास्तव में शिवपूजन सहाय के ही बचपन की कहानी है जिसे आगे चलकर शिवपूजन सहाय ने अपनी  प्रारम्भिक आत्मकथा के रूप में ‘मेरा बचपन’ शीर्षक से बच्चों की एक किताब के रूप में लिखा था  | इन दोनों पुस्तकों को मिला कर देखने पर स्पष्ट हो जाता है कि ‘देहाती दुनिया’ का  ‘भोलानाथ’ और कोई नहीं ‘शिवपूजन सहाय’ स्वयं हैं ( और बचपन के अपने निजी संस्मरण में भी उनका बचपन का घरेलू नाम ‘भोलानाथ’ ही है) | अपनी छोटी-सी पुस्तक ‘मेरा बचपन’ में शिवपूजन सहाय ने अपने जीवन के प्रारम्भिक १०-१२ वर्षों की पूरी  कहानी लिखी है | यह बचपन के संस्मरणों की पुस्तक अब ‘शिवपूजन सहाय साहित्य-समग्र’ के खंड-२  में उनके सम्पूर्ण संस्मरण-साहित्य के साथ उपलब्ध है |

‘देहाती दुनिया’ में भोजपुर क्षेत्र के एक कल्पित गाँव  ‘रामसहर’ के  एक ज़मींदार बाबू रामटहल सिंह की कहानी है | ‘भोलानाथ’ के (अनाम) पिता उन्हीं बाबू रामटहल सिंह के  दीवान  हैं | उसी गाँव की बेटी,  ‘भोलानाथ’ की माँ, जो अपने पिता की एकमात्र संतान थी, पिता के मरने के बाद, अपने घर की जमीन-जायदाद संभालने के लिए अपने पति के साथ  आकर अपने  मायके के गाँव ‘रामसहर’ में ही बस गयी है | वास्तव में ‘देहाती दुनिया’ के ‘भोलानाथ’ की यह कथा स्वयं लेखक शिवपूजन सहाय के अपने पूर्वज ‘सुथर दास’ की ही  कहानी है जिसे शिवपूजन सहाय ने अपने पूर्वजों से सुना होगा | पांच-सात  पीढ़ी पहले उनके ही पुरखा ‘सुथर दास’ गाजीपुर जिले के शेरपुर गाँव से अपने माता-पिता के साथ आकर, कुछ ऐसी ही परिस्थितियों में,  उनवांस (अपने ननिहाल)  में बस गए थे | सुथर दास का वंश फिर उनवांस में ही फूला-बढ़ा, और शिवपूजन सहाय के परिवार के वंशवृक्ष के अनुसार सुथर दास के बाद  उनके पौत्र अथवा प्रपौत्र देवी दयाल (बीच की पीढ़ियों में कुछ अस्पष्टता है) के पुत्र वागीश्वरी दयाल के ही ज्येष्ठ पुत्र हुए शिवपूजन सहाय |

‘देहाती दुनिया’ उपन्यास में वाचक  ‘भोलानाथ’ के पिता ‘रामसहर’ के जमींदार सरबजीत सिंह के बेटे रामटहल सिंह की दीवानगिरी संभालने उनवांस आये, जिस पद पर पहले उनके (अनाम) ससुर काम करते रहे थे | इस ज़मींदारी और दीवानगिरी का कथा-सूत्र शिवपूजन सहाय के अपने समय की परिस्थिति से मिलता-जुलता है, क्योंकि आगे चल कर शिवपूजन सहाय के पिता वागीश्वरी दयाल भी आरा के ज़मींदार बक्शी हरिहर प्रसाद सिंह के पटवारी-पद पर काम करते थे, जो दीवानगिरी ही जैसा काम था | हालांकि उससे पहले वागीश्वरी दयाल के पूर्वज साधारण काश्तकार किसान ही थे | सुथर दास के पिता भी अपने मृत ससुर की जमीन-जायदाद संभालने उनवांस आकर बसे थे, पर उनको किसी जमींदार की दीवानगिरी मिलने की कोई बात ज्ञात नहीं है | उपन्यास की कथा संरचना में – ‘भोलानाथ’ का अपने ननिहाल में आकर बसना, और उनके पिता का ‘राम सहर’ के ज़मींदार बाबू रामटहल सिंह की दीवानगिरी संभालना – लेखक की अपनी पारिवारिक पूर्व-गाथा के  इन दो सूत्रों (अतीत और वर्त्तमान) को एक आत्मकथात्मक कथानक में पिरोया गया है, ऐसा स्पष्ट  प्रतीत होता है |

इस उपन्यास को लिखने के ७-८ वर्ष पूर्व - जब वे आरा में स्कूल शिक्षक थे और अपना साहित्यिक जीवन प्रारम्भ ही कर रहे थे - शिवपूजन सहाय ने अपनी १९१६ की डायरी में लिखा था कि वे  ‘देहाती दुनिया’ नाम से एक आत्मकथात्मक उपन्यास लिखना चाहते हैं, जिससे इस धारणा की पुष्टि होती है कि उनका यह उपन्यास ‘देहाती दुनिया’ - आत्मकथात्मक करघे पर बुनी हुई, गाँव के लोगों के ओढ़ने की एक चादर-जैसी   कृति है, और ‘राम सहर’ और उस गाँव के सभी चरित्र उस चादर पर बने बेल-बूटों की  तरह  शिवजी के अपने गाँव-जवार के ही चरित्र हैं | जीवन के अंतिम वर्षों में लिखे शिवजी के कुछ ग्रामीण चरित्रों के शब्द-चित्रों  – ‘महेस पांडे’, ‘उदित पांडे’, ‘लोकनाथ पंडित’, आदि  - को पढने पर यह धारणा और संपुष्ट होती है कि शिवजी की ‘देहाती दुनिया’ के चरित्र और उनका परिवेश उनके अपने गाँव उनवांस के आस-पास के ही हैं |  वस्तुतः, ‘मेरा बचपन’ और इन कुछ पूरक शब्द-चित्रों को पढने से यह धारण और दृढ होती है कि ‘देहाती दुनिया’ की – ‘राम सहर’ की - यह कहानी  लगभग पांच-सात पीढ़ी पहले की उनकी अपनी  पारिवारिक जीवन-गाथा के धागों से ही बुनी हुई कहानी है | स्पष्टतः,‘देहाती दुनिया’ उपन्यास के ताने-बाने में यह कथानक लेखक की अपनी जीवन-स्मृति-सामग्री के  अर्द्ध-सत्य और आधी कल्पना की ही एक कलात्मक बुनावट है |

शिवपूजन सहाय का जब जन्म हुआ (१८९३ ई.) तब उनकी दादी जीवित थीं, हालांकि दादा देवीदयाल मर चुके  थे | अतः, अधिक संभावना है कि शिवजी ने अपनी दादी (‘नारायणी’) से या पिता और चाचा लोगों से ही सुथर दास के पिता के शेरपुर से आकर उनवांस में बसने वाली यह कहानी सुनी हो, और उसीको अपने उपन्यास के  कथानक का आधार बनाया हो |

जिला गाजीपुर का शेरपुर गाँव तो आज एक छोटा शहर बन चुका है | पुराना यह शेरपुर गाँव गंगा नदी के उत्तरी  छोर पर (उत्तर प्रदेश में) ही स्थित है, और दक्खिनी छोर पर है बक्सर (जो अब बिहार में एक नया  जिला-मुख्यालय है), जहाँ से उनवांस गाँव सीधे १५ किमी दक्षिण पड़ता है | शेरपुर से ही सुथर दास (शिवजी  के पूर्वज) अपने पिता-माता के साथ अपने मृत नाना की जमीन-जायदाद संभालने  ननिहाल-गाँव  उनवांस में आकर बस गए थे जो वास्तव में ‘देहाती दुनिया’ के कथानक का ‘रामसहर’ गाँव ही  है | उपन्यासकार ने अपने उत्कृष्ट शिल्प-कौशल से उपन्यास के कथानक को इन दोनों गाँवों को आधार बनाकर  – और अतीत और वर्त्तमान के घटित तथ्यों को जोड़-घटाकर बुना है, और इसमें बहुत सारी भौगोलिकता को जान-बूझ कर अस्पष्ट रहने दिया है  | उपन्यास के पहले अध्याय ‘माता का अंचल’ में यद्यपि पिता के मछलियों को दाना खिलाने गंगा-तट की और जाने का ज़िक्र है – जिससे एक अस्पष्ट संकेत मिलता है कि इस समय ‘भोलानाथ’ का शैशव अपने पिता के गंगा-तटीय गाँव में ही बीता था, जो उपन्यास की कथा-संरचना के अनुकूल है | फिर कुछ बड़े होने पर ही वह अपने माता-पिता के साथ अपने ननिहाल के गाँव ‘राम सहर’ में आया था, लेकिन ध्यान से देखने पर लेखक का इस तथ्य को एक कुहासे में अस्पष्ट बनाये रखने का यह प्रयास उसके संश्लिष्ट कथा-शिल्प की पुष्टि करता है | और इस प्रकार उपन्यास का यह संश्लिष्ट कथा-शिल्प, कल्पना के स्तर पर, पिता और माता के इन दो गाँवों को ‘रामसहर’ के रूप में एक-दूसरे पर अध्यारोपित कर देता है | इसीलिए वाचक के बचपन की आत्म-स्मृति का यह ‘राम सहर’ गाँव ‘उनवांस’ गाँव ही है |      (ध्यातव्य है कि उनवांस गाँव  से सटे पूरब एक ‘कोचान’ नदी भी बहती है जो फिर उत्तर में गंगा में जा मिलती है |) इस तरह उपन्यास के शिल्प में, बचपन के अपने उनवांस गाँव की ‘कोचान’ नदी ही ‘गंगा’ का रूप ग्रहण कर लेती है | यह स्मृति-विज्ञान की एक संश्लिष्ट प्रक्रिया है जो उपन्यास को एक मिथकीय कुहेलिका से आवृत्त करता है |  

उपन्यास के अंत में, जैसे कथावृत्त पूरा हो रहा हो, कहानी फिर एक बार ‘भोलानाथ’ के उसी गंगा-तटीय ददिहाल के अनाम गाँव की ओर लौटती है, जब ‘भोलानाथ’ अपने पिता के साथ ददिहाल के उसी गाँव के मूसन तिवारी के भतीजे की बरात में उधर ही पास के किसी गाँव में जाता है | पर जब ‘भोलानाथ’ पिता के साथ उस  बरात से अपने  ददिहाल के गाँव लौटता है, तभी ननिहाल वाले गाँव ‘रामसहर’ से  रामटहल सिंह का हजाम उनकी चिट्ठी लेकर वहाँ आता है कि पसुपत पांडे का बेटा गोबर्धन रामटहल सिंह की पत्नी महादेई को लेकर भाग गया है, और रामटहल सिंह ने भोलानाथ के पिता को तुरत वापस रामसहर बुलाया है | इस तरह ‘देहाती दुनिया’ दो गाँवों की कथा है (हालांकि ददिहाल के गाँव का नाम उपन्यास में कहीं  नहीं लिया गया है), और यद्यपि उपन्यास के  अंत में ददिहाल के गाँव का अस्पष्ट उल्लेख अवश्य आता है, किन्तु  उपन्यास का कथानक मुख्य रूप से वाचक (‘भोलानाथ’) के ननिहाल के गाँव  -  ‘राम सहर’ में प्रारम्भ से ही  केन्द्रित रहता है | स्पष्ट है कि यह ‘राम सहर’ गाँव ‘देहाती दुनिया’ के लेखक शिवपूजन सहाय का अपना गाँव उनवांस ही है |

















(‘दे'हाती दुनिया’ उपन्यास पर मेरा समालोचनात्मक लेख आप मेरे ब्लॉगvibhutimurty.blogspot.com पर पढ़ सकते हैं, जहां इस उपन्यास के इस आत्मकथात्मक तथ्य को - जिसकी ओर सामान्य समालोचनात्मक विवेचन में अभी तक ध्यान नहीं दिया गया था -  विशेष रूप से रेखांकित किया गया है | इस प्रसंग में इसी ब्लॉग पर  इस श्रृंखला की आगे की कुछ कड़ियों में  हमारे गाँव ‘उनवांस’, और गाँव में पिता के साथ बीते  मेरे अपने बचपन तथा मेरे गाँव और परिवार से सम्बद्ध अन्य विवरण और संस्मरण सामग्री पढ़ी जा सकेगी | )         

आलेख एवं सभी चित्र © आ. शिवपूजन सहाय स्मारक न्यास

  सैडी इस साल काफी गर्मी पड़ी थी , इतनी कि कुछ भी कर पाना मुश्किल था । पानी जमा रखने वाले तालाब में इतना कम पानी रह गया था कि सतह के पत्...