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Thursday, September 7, 2023


मेरी किताबें



प्रोफेसरी से सेवा-निवृत्ति (१९९९) के बाद मैं अपने निजी बिखरे हुए लेखन को सहेजने में लगा, लेकिन सबसे पहले अपने स्वर्गीय पिता के साहित्य को व्यवस्थित-संपादित करने के कार्य को इस प्रकाशन-अभियान में प्राथमिकता देना मुझे आवश्यक प्रतीत हुआ | अतः प्रारम्भ में मैंने ‘शिवपूजन सहाय साहित्य-समग्र को १० खण्डों में  २०११ में सम्पादित-प्रकाशित किया तथा अपने पिता के साहित्य से सम्बद्ध कई और पुस्तकें प्रकाशित कराईं | यह सिलसिला करीब २००५ में ही शुरू हुआ था | ‘समग्र के सम्पादन-प्रकाशन में लगभग १० वर्ष लग गए थे | उसके प्रकाशन के बाद मैंने अपने लेखन को व्यवस्थित-प्रकाशित करने का कार्य प्रारम्भ किया जिसमें मेरी हिंदी और अंग्रेजी की कई पुस्तकें प्रकाशित हुईं | मेरी कुछ किताबें -  जैसे ‘चाबी (जापानी उपन्यास ‘कागी का अनुवाद ), ‘प्रेमचंद पत्रों में, ‘हिंदी-भूषण शिवपूजन सहाय आदि तो ‘समग्र से पूर्व ही प्रकाशित हो चुकी थीं, लेकिन मेरी ज़्यादातर अंग्रेजी और कुछ और हिंदी पुस्तकें भी तीन साल-लम्बे ‘कोरोना-काल (२०१९-’२२ ) में प्रकाशित हुईं | इधर फेसबुक पर मैं उनके विषय में कभी-कभी लिखता रहा, लेकिन यह काम भी पिछले एक साल (१९२२-’२३) में मेरी गंभीर अस्वस्थता के कारण बिलकुल नहीं हो सका था  |

 

अपनी अंग्रेजी किताबों के विषय में तो मैंने अपने अंग्रेजी के ब्लॉग – murtymuse.blogspot.com – पर ही लिखना उचित समझा | उस ब्लॉग पर मेरी अंग्रेजी किताबों के बारे में कुछ परिचयात्मक जानकारी उपलब्ध है | मेरी ये सारी हिंदी-अंग्रेजी किताबें अमेज़न पर उपलब्ध हैं | यहाँ इस हिंदी ब्लॉग पर मैं केवल उन सभी हिंदी पुस्तकों के कवर-चित्र लगा रहा हूँ | अधिकतर इन पुस्तकों के शीर्षकों  से उनकी सामग्री का परिचय मिल जायेगा | लेकिन उनके विषय में कुछ विशेष जानकारी भी इस परिचयात्मक पोस्ट से मिल सकेगी | आ. शिवजी के नाम पर हमलोगों ने उनके शती-वर्ष १९९३ में ‘आचार्य शिवपूजन सहाय स्मारक न्यास की स्थापना की थी | उनके लिखे सम्पूर्ण साहित्य का कॉपीराईट  न्यास का है | न्यास की योजना के अनुसार आ. शिवजी का या उनसे सम्बद्ध सारा साहित्य  न्यास द्वारा व्यक्तियों को ५०% छूट पर न्यास के डाक-खर्च से उपलब्ध कराने की व्यवस्था है | मेरी हिंदी-अंग्रेजी पुस्तकें भी इसी व्यवस्था के अंतर्गत उपलब्ध हैं | इसके लिए संपर्क सूत्र है – ईमेल : bsmmurty@gmail.com  अथवा WhatsApp no. 7752922938/ 9415336674

 

आ. शिवजी की अन्य पुस्तकों से सम्बद्ध  न्यास की इस योजना के विषय में पूरी सूचनाओं के लिए न्यास का ब्लॉग – shivapoojan.blogspot.com देखा जा सकता है | यहाँ केवल  मेरी कुछ हिंदी पुस्तकों का संक्षिप्त परिचय दिया जा रहा है | 


       

  

 


'दर्पण में वे दिन' सबसे हाल में प्रकाशित संस्मरणों की पुस्तक है जिसमें साहित्यकारों पर लिखे मेरे  लगभग ४० संस्मरण हैं जो मेरे जीवन के प्रारम्भिक ४ दशकों की स्मृतियों पर आधारित हैं जिनमें अधिकांश मेरे पिता के साथ बीते बचपन की स्मृतियों को दुहराते हैं, और बहुत सारे - आ. महावीर प्रसाद द्विवेदी, निराला, प्रेमचंद, राहुल सांकृत्यायन, विनोदशंकर व्यास, अमृतलाल नागर, विष्णु प्रभाकर, 'नटवर', रामवृक्ष बेनीपुरी, नलिनविलोचन शर्मा  आदि से सम्बद्ध हैं जिनमें द्विवेदीजी और प्रेमचंद के सिवा शेष सभी के साथ स्मृति-संस्पर्शपूर्वक जुड़ने का मुझे उन प्रारम्भिक दशकों में अवसर मिला जब मैं अपने पिता के साथ छपरा और पटना में रहा | सजिल्द -७००/-

'चाबी' एक जापानी लघु-उपन्यास का अंग्रेजी से किया हुआ अनुवाद है जिसमें एक अधेड़ प्रोफ़ेसर और उसकी नव-यौवना पत्नी के यौन जीवन की उनकी डायरियों के माध्यम से खुलती हुई सनसनीखेज़  कहानी है | 'हिंदी-भूषण शिवपूजन सहाय' मेरे पिता पर लिखे उनके  समकालीन साहित्यकारों के श्रेष्ठ पठनीय संस्मरण हैं | मेरे पिता की रचनाओं का - जिसमें उनका 'देहाती दुनिया' उपन्यास पूरा है, तथा उनकी कहानिया, संस्मरण, निबंध अदि संकलित हैं -  यह रचना-संचायन साहित्य अकादेमी से प्रकाशित है | इससे पूर्व एक ऐसा ही रचना-संचयन नेशनल बुक ट्रस्ट से भी १९९६ में प्रकाशित हुआ था जो अब अनुपलब्ध है |
 
'चाबी' - २००/-                           'हिंदी-भूषण शिवपूजन सहाय'- २००/-            रचना-संचायन   - ४७५/-



श्रीरामचरितमानस (सरल कथा-सार) तुलसीदास-कृत 'मानस' का सरल हिंदी में रूपांतर है, जिसको पढ़कर आज का पाठक 'मानस' की सम्पूर्ण कथा और भारतीय हिन्दू जीवन-दर्शन से सहज ही परिचित हो सकता है | 
रु - २९५/-

'प्रेमचंद पत्रों में' प्रेमचंद और उनके समकालीन साहित्यकारों के लिखे पत्रों का काल-क्रम से सजा हुआ एक संग्रह है जिसके विषय में श्री अशोक वाजपेयी ने अपनी समीक्षा में लिखा था कि पुस्तक में एक उपन्यास पढने जैसी रोचकता है जिसमें प्रेमचंद के जीवन और समय के प्रत्यक्ष दर्शन होते   हैं |         रु.- ३५०/-  


'जानवर फ़ार्म' प्रसिद्ध लेखक जॉर्ज ओरवेल के लघु उपन्यास 'एनीमल फ़ार्म' का हिंदी अनुवाद है जो जब द्वितीय महायुद्ध के बाद प्रकाशित हुआ था उस समय उसमें  स्तालिनवादी अधिनायकवाद का सबसे कठोर प्रतिवाद एक व्यंग्य-पशुकथा के रूप में सामने आया था |     रु.-२२५/-


बाबू जगजीवन राम की जीवनी जहाँ एक ओर एक गरीब दलित के जीवन-संघर्ष को चित्रित करती है, वहीँ कांग्रेस की और इंदिरा गांधी के आपातकाल की रोचक कथा नए सिरे से उद्घाटित करती है |        रु.- ४५०/-


शिवपूजन सहाय का कथा साहित्य उनकी कहानियों और उनके एकमात्र आंचलिक उपन्यास 'देहाती दुनिया' पर लिखे गए श्रेष्ठ समालोचनात्मक लेखों का पहला प्रामाणिक संकलन है जिसमें नामवर सिंह, विजय मोहन सिंह, परमानंद श्रीवास्तव, रमेश उपाध्याय, दूधनाथ सिंह, मधुरेश आदि के निबंध हैं | इसमें मेरे और श्री आनंदमूर्ति  के भी २-३ पठनीय  निबंध हैं | रु.- ९९५/-

'मन एक वन' मेरी कविताओं की पुस्तक है जिसमें मेरी लगभग ५० कवितायेँ है और लगभग उतनी ही अंग्रेजी कवियों - शेक्सपियर, कीट्स. शेली. टेनिसन से लेकर आधुनिक इलियट और ऑडे तक की कविताओं के अनुवाद हैं, और इन लगभग २० कवियों पर लम्बी परिचयात्मक टिप्पणियाँ है जिनमें  अंग्रेजी काव्य-परंपरा का एक संक्षिप्त इतिहास पढ़ा जा सकता    है | पुस्तक की भूमिका आधुनिक हिंदी के ख्यात कवि श्री अरुण कमल ने लिखी है |   रु.- ३९५/-


प्रवासी की आत्मकथा स्व. भवानी दयाल सन्यासी  की १९४५ में प्रकाशित पुस्तक का नया परिमार्जित संस्करण है जिसमें उनके कई लम्बे-लम्बे पत्र भी शामिल किये गए हैं तथा और दस्तावेजी सामग्री जोड़ी गयी है | इस पुस्तक में गांधीजी के दक्षिण अफ्रीका के सत्याग्रह का प्रमाणिक इतिहास भी सम्मिलित है | भवानी दयालजी के पिता जयराम सिंह कैसे गिरमिटिया जोड़ा  बनकर द. अफ्रीका पहुंचे थे उसकी अत्यंत रोचक कहानी इस आत्मकथा में मिलेगी |  रु.- ९९५/-

राजा राधिका  रमण राच्घना-संचयन  में राजा  साहब का पूरा साहित्य संक्षिप्त रूप में पढ़ा जा सकता है | वे  सुर्यपुरा (आरा के पास) के राजा थे जिनका वृहदाकार प्रसिद्ध उपन्यास 'राम रहीम' इस संचयन में अपने संक्षिप्त रूप में पूरा पढ़ा  जा सकेगा और साथ ही उनके पूरे रचना-संसार से परिचित हुआ जा सकेगा | मेरे द्वारा संपादित यह संचयन साहित्य अकादेमी से हाल में ही प्रकाशित हुआ है |    रु.- ३४०/- 

अंत में, 'सुनो पार्थ' श्रीमद भगवद्गीता का सरल सुबोध हिंदी में बड़ी कुशलता से किया हुआ अनुवाद है जो इस पवित्र ग्रंथ के सारे रहस्य को सुलझाते हुए उसको आज के जीवन के निकट ला देता है और उसके पावन ज्ञान को आज के पाठक के लिए सुलभ बना देता है |   रु.- २९५/-

इनमें से अधिकांश पुस्तकें अमेज़न पर उपलब्ध है | किसी तरह की कठिनाई होने पर मुझसे संपर्क करें तो इनमें से ज़्यादातर पुस्तकें आधे मूल्य पर मुफ्त डाक-खर्च पर  प्राप्त हो सकती हैं |

संपर्क-सूत्र : bsmmurty@gmail.com WApp no. 7752922938 



 


 

  सैडी इस साल काफी गर्मी पड़ी थी , इतनी कि कुछ भी कर पाना मुश्किल था । पानी जमा रखने वाले तालाब में इतना कम पानी रह गया था कि सतह के पत्...