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Tuesday, August 13, 2019


कविता का झरोखा : ४

विलियम ब्लेक
[1757-1827]

























विलियम ब्लेक का स्थान अंग्रेजी  कविता में अन्यतम है | वह कवि होने के साथ ही एक महान चित्रकार भी था | उसने धातु के प्लेट पर गोद कर छापे के  रंगीन चित्र बनाने की कला (इन्ग्रेविन्ग)  में महारत हासिल की थी, जो आजीवन उसका पेशा भी रहा | वह अक्सर अपनी कविताओं को ऐसे चित्रों से चित्रित भी करता था | अपनी ‘टाइगर’ कविता के लिए ही उसने यह चित्र बनाया था | ब्लेक की कविता अपने समय की परम्परागत बुद्धिवादी कविता की प्रतिक्रिया में लिखी कविता है, और उसे ‘रोमांटिक’ कवियों के पूर्ववर्त्ती कवियों में गिना जाता है | वह कविता में  बौद्धिकता के सारे बंधनों को तोड़कर कल्पना की सम्पूर्ण स्वच्छंदता का हिमायती था | अपनी कविता में वह धर्म, विधान और विज्ञान के सभी बंधनों को तोड़ने का पक्षधर था |
 
विलियम ब्लेक की यह कविता ‘टाइगर’ अंग्रेजी की सर्वाधिक लोकप्रिय कविताओं में गिनी जाती है | प्रारम्भ में ब्लेक की कविताओं के दो संग्रह प्रकाशित हुए थे ‘सांग्स ऑफ़ इनोसेंस (1789) और ‘सांग्स ऑफ़ एक्सपेरिएंस’ (1794) | पहले संग्रह में उसकी कविता ‘लैम्ब’ (मेमना) प्रकाशित हुई थी, जो अबोधपन और निष्पापता का प्रतीक है, और दूसरे संग्रह  में प्रकाशित यह कविता ‘टाइगर’, ठीक उसके विलोम के रूप में, पाप और हिंसक-वृत्ति का रूढ़ प्रतीक है | ब्लेक की इन दोनों कविताओं का प्रतीकात्मक प्रसंग इसाई धर्म से जुड़ा है | 

वास्तव में ब्लेक की कविताओं की पूरी पृष्ठभूमि ही इसाई धर्म के विरोध में एक भिन्न प्रकार के  रहस्यवादी मिथक से जुडी हुई है | किन्तु, उससे हट कर यदि हम इस कविता को भारतीय परिप्रेक्ष्य में भी देखें तो हमारे यहाँ भी सृष्टिकर्ता के सृजक और विनाशकर्त्ता  के दोनों रूप मान्य हैं, जिसको जन्म-मरण के रूप में समझा जा सकता है | इस पूरे जीवन नाट्य को हम शैशव के अबोध रूप में और शेष जीवन के पापोन्मुख एवं हिंसक पक्ष को कलुषित रूप में देख  सकते हैं | इस कविता का ‘व्याघ्र’ जीवन के उसी भयकारी और हिंसक पक्ष का प्रतीक है, जैसे ‘मेमना’ मानव-जीवन के शिव और सुन्दर पक्ष का प्रतीक है | कवि सामान्य-जन के मन में उठने वाले उसी प्रश्न को कई प्रकार से दुहराता है – ‘ किन अनश्वर हाथों-आँखों ने रची तेरी यह विकराल देहयष्टि ?’; ‘किन सुदूर अम्बरों- पातालों में’ पाई वह ज्वाला ? वे औजार, वो भट्ठी, वो निहाई – तुझ जैसे महाकाल को रचने के लिए सृष्टिकर्ता को कहाँ से मिले ये सारे उपकरण ? और जिसने मेमने जैसे अबोध, निष्कलुष को बनाया, उसीने तुम्हारे जैसे निष्ठुर, नृशंस का निर्माण कैसे और क्यों किया ? जीवन के मूलभूत प्रश्नों से ही जुड़े हैं इस कविता में पूछे गए सभी प्रश्न | पांचवें छंद में तारों की बर्छियों और स्वर्ग के आंसुओं का प्रतीक इसाई धर्म के रहस्यवाद से जुड़ा है, जो मेमने के सृजन के रूप में प्रतीकित हुआ है | 

ब्लेक की इस कविता को पढ़ते हुए हमें  केदारनाथ सिंह की कविता ‘बाघ’ की याद स्वाभाविक रूप से आ जाती है, जिसमें भी ‘बाघ’ एक अत्यंत रहस्यमय-संश्लिष्ट प्रतीक के रूप में कई भिन्न-भिन्न छवियों-प्रसंगों में हमें दिखाई देता है | ‘बाघ’ कविता के अंतिम चित्रों में  कवि कहता है – ‘फिर आ गया बाघ/...आग की तरह लपलपाता हुआ बाघ.../ किसी ने देखीं / सिर्फ उसकी आँखें / किसी ने धारियां/ किसी को दिख गए जबड़े / किसी को हिलते हुए मांसल पुट्ठे / पूरा बाघ किसी ने नहीं देखा /...सबको थोडा-थोडा / दिख गया बाघ!’ केदारनाथ सिंह की इन पंक्तियों में भी हमें जैसे  ब्लेक के उस ‘व्याघ्र’ की परछाइयाँ - उसकी झलक दीख जाती है !

  





[ 'टेम्पटेशन' नामक ब्लेक द्वारा निर्मित चित्र]



व्याघ्र
  
व्याघ्र, व्याघ्र !  अग्नि-सम लहलह,
जलते वनप्रांतर में रात्रि के,
किन हाथों-आंखों ने रची अनश्वर 
 देहयष्टि  विकराल यह तेरी ?

किन सुदूर अंबरों-पातालों में
लपकी इन आंखों की ज्वाला?
किन निर्भय पंखों पर उड़कर
निडर हाथ यह आग लगाई?

कैसे वे स्कंध, कैसी कला?
कैसे गढ़ीं ह्रदय-मांसपेशियां?
और धड़कने लगा ह्रदय  जब
कैसे रचे निडर हाथ,निडर पांव?

कैसा हथौड़ा,कैसी ज़ंजीर,कैसी भट्ठी
तपा-बना जहां  तेरा यह मस्तिष्क ?
कैसी वह निहाई, कैसी साहसी पकड,
जिसने जकड़ा उस प्राणहर संकट को?

जबकि तारों ने फेंकीं अपनी बर्छियां,
स्वर्ग को धोया अपने आंसुओं से -
मुस्कुराया वह अपनी रचना देख?
मेमना तो बनाया,पर क्या तुम्हें भी बनाया ?

व्याघ्र,व्याघ्र ! अग्नि-सम उज्वल,
रात्रि के वन-प्रांतर में जलते,
किन अमर हाथों-आंखों ने रची
 देहयष्टि विकराल यह तेरी ?




 [विलियम ब्लेक की कविता ‘टायगर’ का अनुवाद एवं टिप्पणी  © मंगलमूर्ति ]










चित्र : १. विलियम ब्लेक  २/३/४.   ब्लेक द्वारा चित्रित उसकी तीन प्रसिद्ध कविताओं की मुद्रित छवियाँ ५. ब्लेक का आवास (लंदन) |   सभी चित्र सौजन्य गूगल छवि-संग्रह

कविता का झरोखा श्रृंखला में आगे आने वाली कड़ियाँ 

रॉबर्ट हेरिक           जॉर्ज हर्बर्ट         पर्सी बिशी शेली        जॉन कीट्स        अल्फ्रेड टेनिसन 

मैथ्यू आर्नल्ड         गेरार्ड मैनली हॉपकिंस        विलियम बटलर यीट्स        टी.एस.इलियट 

डब्ल्यू. एच. ऑडेन ....          रवीन्द्रनाथ ठाकुर       पाब्लो नेरुदा ....  आदि |   
   
 

 


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