राम–विवाह
शिवपूजन सहाय
मधुर भाव के रामोपासाक
कहते हैं कि आशिक–माशूक की तरह उपासना करनी चाहिए । रामजी का सुन्दर रूप बड़ा रिझवार
है | सर्वांसुन्दर चिरतरुण रूप में लुब्ध प्रेयसी की भांति जब उपासना की जाती है जब
राम रीझते हैं । जनकपुर के दुल्लह का मंगलमय वेश जब ध्यान में आता है तब वहां की
मृग नयनी युवतियों की लुभाई हुई टकटकी भी ध्यान
में आती है |
चारों भाई जब दुल्लह के रूप में जनकपुर के
महल में गये थे तब यहां की सुन्दरी तरुणियों को अपने तन–मन की सुधि भूल गर्इ । चारों ओर से चारो दुलहों को घेरकर वे
तरह–तरह के विनोद करने लगीं । उस समय दोनों सुमित्रानन्दन ही अपनी
सरस बातों से सुन्दरियों का चित्त चोरने लगे । रामजी और भरतजी केवल गंभीरता से मुस्कुराते
रहे । रानियों का आनन्द अपार था ।
जनकपुर के राजप्रसाद के सिंहद्वार पर अयोध्यानरेश
की बरात लगी है | संगमर्मर के धवलोज्जवल महल में रत्न–खचित स्वर्णस्तम्भों के बीच–बीच कर्पूर के दीपक और कस्तूरी की बत्तियां जल रही हैं । चौदह
हजार चार सौ चौरासी खम्भों का सुविशाल मण्डप राजसी स्वागत–सामग्रियों से सम्पन्न
है । सुगंधित फूलों की वर्षा अटारियों से हो रही है । अगहन मास है,
सिंगारहार के फूल धूप-धूप में आकाश के तारे हो रहे हैं । बरात के बाजे–गाजे के साथ आगे श्वेत सुचित्रित सुसज्जित गजराज पर महर्षि वशिष्ठजी
और महामुनि विश्वामित्रजी विराजमान हैं । पीछे
एकदन्त महागजराज पर महाराज दशरथजी हैं । दोनों
हाथियों पर ऊंची अटारियों से प्रसन्नवदना सुन्दरियां बार–बार कुसुमांजलि छोड़ रही हैं । कस्तूरी के इत्र का सरस फाहा महाराज
को लक्ष्य पर फेंका जा रहा है । आनन्दमग्न महाराज हंस–हंसकर सुख लूटते हैं । बरातियों को इत्र–पान बंट रहा है । जाड़े की रात में भीड़ के मारे सबको गर्मी छूट
रही है । पंखे झले जा रहे हैं । गुलाब–खस–केवड़े का जल सर्वत्र सुलभ है । शीतल निर्मल जल शीतकाल में भी
सुखद प्रतीत होता है । कानों से लगकर बोलने पर भी कोई किसी की बात कुछ नहीं सुन पाता
। सुविस्तृत रेशमी मण्डप देवताओं की पुष्पवृष्टि
से लद गया है । पुष्पवृष्टि द्वारा पृथ्वी और आकाश पुष्पपाशबद्ध हैं । प्रेमपुष्पों
का बंधन बड़ा आनन्दवर्द्धक होता है ।
जनकपुर के महल का कनक–कपाट खुला । जरीदार मखमली पर्दा हटा । चार चंचल घोड़ों पर चार
दुल्लह भीतर घुसे । बरात तो बाहर की महोत्सव
का आनन्द लेती रही । पर्दा फिर अपनी जगह पर । अन्दर अपसराओं से भी सुन्दरी नारियों
की अपार भीड़ । वहां कोई पुरुपवर्ग नहीं । चार तगड़ी तरुणियों ने घोड़ों की लगाम थाम ली
। चार नवेली नाइनों ने चारों दुलहों को घोड़ों से उतार लिया । उन नाइनों ने गोद में
उठाकर चारों किशोरों को रानियों के बीच में चौके पर बिठा दिया । रनिवास में परिछन और चुमावन होते
समय रामजी मुस्कुराते ही रहे । उनकी मृदुमन्दमधुर मुस्कान महिलाओं के मन को मोहने लगी । हजारों बड़ी–बड़ी आंखें पलकों के अधर खोल मुस्कान–माधुरी पीने लगीं ।
एकटक निहारनेवाली आंखे न थकती थीं न अघाती थीं । चुमावन के समय विनोदवश उमंगभरी किशोरियां
जब दुलहों के गाल मीड़ती थीं तब लखनलालजी दोनों भाई भी हंसकर बदला चुकाते थे ।
जनवासे में बरात गई तो राजसी शान की तैयार
देश दंग रह गई । भेदभाव के बिना सबका समान स्वागत । दास और दासी,
रथ और हाथी–घोड़े, नाना प्रकार के रस और फल–फूल, विविध भांति के सुस्वादु भोज्य पदार्थ । इन्द्र और कुबेर का
भाण्डार भी वैसा भरपूर न होगा । दास–दासियों की अपूर्व सुन्दरता और सेवापरायणता पर बराती चकित–स्तम्भित–मुग्ध हो रहे । धन्य जनकपुर !
विवाह–मण्डप में भी रामजी मुस्काते ही रहे । जानकीजी की नीची निगाह
रामजी के चरणकमल में भ्रमरी–सी लीन थी । प्रभु कभी–कभी तिरछी कनखियों से भी महारानीजी की ओर देख लेते थे । मायापति
के मायाजाल में मीनाक्षियां फंसकर तड़प रही थीं; पर सौन्दर्य सागर की आनन्दलहरी उन्हें
जीवनदान देती चलती थी । वे तरंगों पर उछलती और प्रेम–भंवर में डूबती थीं । उनकी लालसाओं के साथ रामजी की हंसीली आंखें
खिलवाड़ करती थीं । धन्य मायापति!
विवाह के बाद कोहबर । सोने के हिंडोले । दुलहों
के साथ दुलहिनों को युवतियां झुलाने लगीं । सामने नर्त्तकियां नाचने–गाने लगीं । हास्यरस के रसीले गीत । मृदंग और वीणा बजाने वाली कलावन्तियाँ नयनों को नचा-नचा कर और
नार्त्ताकियां मुस्कराहट के साथ मनोरंजक भावभंगियां दिखाकर रिझाने लगीं । रामजी मुस्कानों
की मदिरा पिलाकर मदिराक्षियों को बेसुध करते रहे । सीताजी की दृष्टि दृढ़ता से रामजी
के चरणों पर अड़ी रही । अन्य दुलहिनें भी नतनयना थीं ।
दुलहों को जेवनार के समय सुन्दरियों ने खूब
हंसाया । अंगों के आकार की मिठाईयां देख दोनों छोटे भैया खिलखिला उठे । देहाकार के
मीठे–सलोने पकवानों को लखनलालजी मुट्ठी में मसल कर दिखाते और हंसाते
थे । रामजी का रुख देख जब दोनों छोटे भाई चुपचाप जीमने लगे तब फिर सुन्दरी किशोरियों
ने छेड़ा । अब दधिकांदों का क्रम चला । श्याम–गौर कपोलों पर दही की छाली के गोल टुकड़े वैसे ही सोहते थे जैसे
मरकत और कनक पर स्फटिक ।
महाराज दशरथ की जेवनार हुई तो उनके साथ बड़े–बड़े राजा बरातियों सहित आये । जनकजी की भोजनशाला विचित्र सचित्र
बनी थी । उसकी दीवारों और छतों में तीर्थों और देवताओं के रंग–बिरंगे चारु चित्र थे । स्फटिक की बेदियों पर ऊनी कालीन और पीताम्बरी
गद्दे । हाथी दांत की चुनमुनी चौकियां । उनपर सोने के थाल । छप्पनों प्रकार में सौरभ
की बहार । हर सरदार के पास एक–दो सेवक सुरक्षित जल की झारी सुराही लेकर खड़े । अटारियों पर
सुन्दरियां सरस गाली गा रही थीं । इत्र–पान की छूट ।
दुलहों की उबटौनी होने लगी । नाना प्रकार
के सुगन्धित द्रव्यों से प्रस्तुत उबटन शुभांगी कामिनियां लगा रही थीं । रामजी की मांसल
छाती,
भुजा और जांघ पर उबटन का मर्दन हंसते–हंसते नेत्र नचा–नचाकर हो रहा था । प्रभु के ललाम लोचनों और अरुणाधरों में मुस्कान
गोई हुई थी । लखनलालजी मसखरी का तुक मिला रहे थे । रानियां कौतुक देखती और विनोदानन्द
लूटती थीं । धन्य मिथिला!
जनकपुर में जिन सुन्दरी युवतियों का मन–मतंग रामजी के अनूप रूप की रसधारा में क्रीड़ा करता रहा उन सबकी कामना एवं लालसा की पूत्ति के लिए रामजी ने कृष्णावतार धारण किया और वे सुन्दरियां गोपिकाएं होकर अवतरीं । रसिकशिरेामणि ब्रजमण्डलेश्वर कृष्ण के रूप में रामजी ने सबकी साध पूरी की । बरात चली गई, पर युवतियां जीवन–भर श्यामसुन्दर की रूपमाधुरी से छकी रहीं । राम का अलौकिक रूप ही अहर्निश उनके चिन्तन–मनन का मुख्य विषय बना रहा । रामजी के रूप का जादू जनकपुरी युवतियों पर ऐसा छा गया कि वे प्रेमोन्मादिनी–सी होकर रामजी के सेवा में ही रहने का सौभाग्य प्राप्त करने के लिए दिन–रात प्रति क्षण ईश्वर प्रार्थना करती रहती थीं । भूख और नींद हराम हो गई । हा राम, हा राम ही रट कण्ठ के भीतर लगी ही रहती थी । पति–सेवा तथा गुरुजनों की परिचर्या करते हुए भी उनका मन राम–रूप में ही अनुरक्त रहता था ।
राम–रूप जिस किसी ने देखा वही उसका उपासक–आराधक–चिन्तक हो गया । वह रूप ऐसा था कि आंखों में उसके बस जाने पर
फिर दूसरा कोई रूप आंखों में अंटता या समाता ही न था । आंखों में राम–रूप के व्याप्त होने पर दूसरे किसी रूप के लिए जगह नहीं रह जाती
। सर्वव्यापी का व्यापक रूप जहां अड्डा बांधकर जम गया वहां दूसरा रूप कैसे समायेगा
?
धन्य वह आंख! धन्य वह मन! दोनों मिलकर उस रूप को आयत्त करें
तो अहो भाग्य!
राम
विवाह छवि वर्णन
परम पुनीत पीत धोती द्युति बालरवि दामिनी की ज्योती हरति छवि भूरी है
।
कलितललित कल किंकिंणि मनोहर कटिसूतू दीर्घ बाहु
मणिभुषण सों पूरी है ।
पीत उपवीत शुभ यज्ञ व्च्याह साज कर मुद्रिका विलोकि
मार भागि जात दूरी है ।
सोहत उरायत महँ भूषण प्रभासमान मञ्जु नखसिखतें
सुशोभा अतिरूरी है । ।
मुक्तामणि झालर सब अञ्चल संवारे चारु पीत कांखासोती
सो उपरणा सुभसाजे हैं ।
कोमल कमल दल लोचन अमल रूरे कलकान कुण्डल सुलोल
छवि छाजे है ।
सकल सुदेश सुखमाके उपमा के चारु माधुरी सुभगता
नखसिखते विराजे हैं ।
भौंह बंक नासा शुकतुंड भालविन्दु चनद्र केसर तिलक
छविधाम भल भाजे हैं ।।
सवैया
कुन्तल कुञ्चित मेचक चिक्कण और मनोहर
सोहत मांथे ।
हंस की दीप्ति हरे अति ज्योति सुमंलमय मुक्तामणि गांथे ।
मौलि सुदेश की कान्ति महामणि बीच रचे कुसुमावलि साथे ।
मञ्जुल मौन अनूप छटा छकि गे शशि मैनहूं के मद नाथे ।।
©आलेख 'समग्र', न्यास तथा चित्र :
डा.मंगलमूर्त्ति / मिथिला चित्र:सौजन्य
गूगल
No comments:
Post a Comment