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Saturday, May 23, 2020

SNAKE by D H Lawrence

कविता का झरोखा : १० 

सांप

एक सांप आया मेरे उस पानी के पतले सोते के पास
पानी पीने, उस भीषण गर्मी की दोपहरी में
जब मैं पाजामा पहने बाहर निकला | 

उस अँधेरे घने कैरब के पेड़ के नीचे की अजीब महक वाली गहरी छाया में -
धीरे-धीरे अपना घड़ा लिए मैं सीढ़ियों से नीचे उतर रहा था
तो रुक गया, खड़ा रहा, क्योंकि वह सोते के पास पहले से था

अँधेरे में वह दीवाल की एक दरार से निकल आया था
और अपने पीले-भूरे मुलायम अलसाए पेट के बल उतर रहा था
उस पथरीले पानी के सोते के किनारे
और अपनी गर्दन वहां पत्थर पर टिका दी थी
और आराम करने लगा था, और जहाँ नल से चू कर पानी जमा था,
एक छोटे से साफ़ गड्ढे में, मुंह डाल कर पानी पी रहा था
हल्के-हल्के खुले जबड़े से, पानी चला जा रहा था चुपचाप
उसके ढीले लम्बे बदन में       
     
पानी के सोते के पास कोई मुझसे पहले आ गया था
और बाद में आने वाला मैं प्रतीक्षा कर रहा था

उसने पानी पीते हुए अपना सिर थोडा ऊपर उठाया, जैसे जानवर उठाते हैं,
और मेरी और अनमने–से देखा, जैसे पानी पीते जानवर देखते हैं,
और अपनी दुहरी जीभ होठों पर ज़रा फेरी, जैसे टुक सोचता रहा,
फिर उसी तरह झुक कर और थोडा पानी पीता रहा,
बिलकुल मिटटी की तरह भूरा, कुछ सुनहरा,
जैसे धरती की गर्म अंतड़ियों से अभी-अभी निकला हो
सिसली में जुलाई के इस दिन, जब एटना से
धुवां लगातार निकल रहा था |   
  
 शिक्षा की आवाज़ मेरे अन्दर से बोली
इसे मार देना चाहिए, क्योंकि सिसली में
काले,काले सांप तो निरीह होते हैं,
पर सुनहरे सांप ज़हरीले होते हैं |

और मेरे भीतर से आवाजें आईं, अगर मर्द हो तुम
तो एक डंडा लो और तोड़ दो इसको, मार डालो

लेकिन सच कहूं, कितना प्यारा लग रहा था वो,
कितना अच्छा लग रहा था मुझको कि एक मेहमान की तरह
इस सूने में आया था वो, पानी पीने मेरे पानी के सोते पर
और चला जायेगा चुपचाप, शांत, बिना कोई एहसान जताये,
फिर धरती की उन्हीं जलती अंतड़ियों में वापस?

क्या ये कायरता थी मेरी कि मैंने उसको मारने की हिम्मत नहीं दिखाई ?
या मेरा मनोविकार था कि मैं उससे कुछ कहना चाहता था ?
या मेरी विनम्रता थी कि मैं इतना सम्मानित महसूस कर रहा था ?
मैं सचमुच सम्मानित महसूस कर रहा था |

पर फिर वो आवाजें :
अगर तुम डरते नहीं हो, तो उसको मार डालोगे!     

 और मैं सचमुच डर रहा था, बहुत डर रहा था,
लेकिन फिर भी, बहुत सम्मानित भी महसूस कर रहा था,
कि वो मेरा आतिथ्य लेने आया था
गोपनीय धरती के अँधेरे दरवाज़े से निकल कर |

पूरा पानी पी लिया उसने
और तब सिर उठाया, जैसे सपने में हो, या नशे में हो,
दुधारी जीभ को हवा में लहराया, जैसे कोई दुधारी काली रात हो,
जैसे अपने होंठ चाट रहा हो,
और किसी देवता की तरह चारों ओर देखा,
जैसे बस बिना कुछ ख़ास देखे हवा में
धीरे-धीरे अपना सिर घुमा रहा हो
और फिर बहुत धीरे-धीरे, जैसे तिनगुने सपने में हो,
चला अपनी लम्बाई को धीरे-से मोड़ता हुआ
और चढ़ने लगा मेरी चहारदीवारी के टूटे हुए किनारे-किनारे      


 और जैसे ही उसने अपना सिर उस संकरे छेद में घुसाया,
और अपना बदन उसमें धीरे-धीरे खींचने लगा, अपने कन्धों को
समेटते हुए और अन्दर घुसा, एक अजीब भय,
उस काले डरावने बिल में उसके अन्दर घुसने के प्रति एक विरोध का भाव,
प्रयासपूर्वक उसके अन्धकार में खो जाने का डर, और उसके  
सारा अपना बदन अन्दर खींच लेने का एक भयावह अहसास
मुझमें सहसा भर आया, अब जब उसकी पीठ मेरे सामने थी |    

मैंने घूम कर देखा, अपना घड़ा नीचे रख दिया,
एक अनगढ़ सा डंडा उठाया
और पानी के सोते की ओर जोर से फेंका,
खड-खड हुई, पर उसे लगा नहीं
लेकिन अचानक उसके बदन का जो हिस्सा बाहर था
उसमें बेचैन-जैसी एक कंप-कंपी हुई,
जैसे बिजली कौंधी हो, और वह एकदम अन्दर घुस गया
उस अँधेरे बिल में, चहारदीवारी में खुले-हुए मुंह जैसी जो दरार थी उसमें
जिसे उस तपती सन्नाटे वाली दुपहरी में मैं एकटक देख रहा था |

और मुझे तुरत अफ़सोस होने लगा – मैंने सोचा,
कितना घिनौना, क्षुद्र, नीच कर्म था ये !
अपने से ही घिन हो आई मुझको
अपनी अभिशप्त शिक्षा की उस आवाज़ को लेकर |      


 और मुझको लगा, आह, लौट आता मेरा वो सांप!

क्योंकि फिर एक बार वो मुझको एक बादशाह-जैसा लगा,
एक निर्वासित बादशाह, पाताल-लोक का बेताज बादशाह,
जिसे अब फिर से ताज पहनाया जायेगा |

और इस तरह मैं यह मौका चूक गया
जिंदगी के इस शहंशाह के साथ
और मुझे अब इसका पश्चात्ताप करना होगा :
इस घटियापन का |


सौ साल पूरे हो गए हैं डी. एच. लॉरेंस की इस अत्यंत लोकप्रिय कविता ‘सांप’ के – जब यह कविता ताओर्मिना (सिसली) में लिखी गयी थी, जहाँ १९२०-२२ में लॉरेंस रहता था | लॉरेंस के जीवन की 
घटनाओं से अंग्रेजी साहित्य के अध्येता तो परिचित ही होंगे | वह इंग्लॅण्ड के नोट्टिंघमशायर के एक खान-मजदूर का बेटा था जो प्रथम विश्व युद्ध के दौरान वहीँ के एक भाषा-शास्त्री प्रोफ़ेसर की पत्नी के साथ, जो उससे उम्र में ६ साल बड़ी थी, जर्मनी भाग गया था, और फिर उससे शादी करने के बाद वह इटली के दक्षिण एक छोटे से द्वीप सिसली में ताओर्मिना नामक शहर में रहने लगा था | उसकी यह विख्यात कविता ‘सांप’ वहीँ लिखी गयी थी जहाँ एक पहाड़ी पर एक मकान में वह अपनी प्रेमिका पत्नी फ्रीडा के साथ रहता था | मकान के सामने पानी का एक सोता बहता था जहां एक गड्ढे में कुछ पानी जमा रहता था, जहाँ से वह पानी लिया करता था | वहीँ चहारदीवारी के एक छेद से एक सांप निकल कर उस गड्ढे में अपनी प्यास बुझाने आया है – कविता में इसी का एक रोमांचक चित्र है, जिसमें अनेक अर्थ-छवियाँ दिखाई देती हैं |

अनुवाद एवं टिप्पणी © मंगलमूर्ति
चित्र : सौजन्य - गूगल छवि-संग्रह


सिसली का तओर्मिना शहर जहाँ लॉरेंस १९२०-२२ में रहा था 
     




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