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Tuesday, March 28, 2017

                     नव-संवत्सर : २०७४

आज विक्रमीय संवत २०७४ में वासंतीय नवरात्रि का प्रथम दिवस चैत्र शुक्ल १ है| आज से अगले ९ दिन तक हिन्दू धर्म में चैत्र नवरात्रि का पर्व मनाया जाता है| इसमें शारदीय नवरात्रि की भांति ही दुर्गा की पूजा होती है| इसको ध्यान में रखते हुए आज से अगले ९ दिन तक मेरे ब्लॉग– vagishwari,blogspot.in –  पर ‘श्रीदुर्गा सप्तशती’ का सरल हिंदी में लिखा मेरा कथा-सार प्रकाशित होगा| अगले ९ दिन तक प्रतिदिन आप इस ब्लॉग पर ‘श्रीदुर्गासप्तशती’ के १३ अध्यायों का कथा-सार क्रमशः पढ़ सकेंगे| इन धर्म-ग्रंथों का पाठ धार्मिक अनुष्ठान के रूप में संस्कृत में तो बहुत लोग करते हैं, और कुछलोग इन ९ दिनों में 'रामचरित मानस' का पाठ भी करते हैं| किन्तु आज नारी-विमर्श के इस युग में नारी-शक्ति का माहात्म्य समझने के लिए इस ‘श्रीदुर्गासप्तशती’ के विषय में सामान्य जन को भी जानना चाहिए| हिन्दू-समाज में नारी-शक्ति की महत्ता बहुत अधिक मानी जाती है| इस सरल कथा-सार को पढ़ कर आप उससे सहज ही परिचित हो सकते हैं| (ब्लॉग पर पढ़ने में इसका नया अध्याय  ऊपर मिलेगा और पुराने अध्याय क्रमशः नीचे मिलेंगे, इसका ध्यान रखना होगा|)

'श्रीदुर्गासप्तशती' का प्रथमांश इस प्रकार प्रारम्भ होता है –

                   श्रीमद् दुर्गासप्तशती सार

एक बार व्यास जी के शिष्य महातेजस्वी जैमिनि ऋषि ने तपस्या और स्वाध्याय में लगे हुए महामुनि मार्कण्डेय से कई प्रकार की पौराणिक विषयों से सम्बद्ध जिज्ञासायें कीं। मार्कण्डेय मुनि ने संध्यावन्दनादि कार्यों में अपनी व्यस्तता बताते हुए मुनिवर जैमिनि को द्रोण पक्षी के चार पक्षी पुत्रों के पास अपनी शंकाएँ लेकर जाने को कहा। इन पक्षियों का जन्म दुर्वासा ऋषि द्वारा वसु अप्सरा को दिए शाप के कारण पक्षी योनि में हुआ था। ये चारों महाभारत के युद्ध में अर्जुन के बाण से अपनी यक्षिणी माता का गर्भ फट जाने के कारण अण्डों के रूप में युद्ध भूमि में गिरे, और एक हाथी के टूटे हुए घंटे से ढके रहने के बाद शमीक मुनि के द्वारा पाये गए एवं रक्षित - पालित हुए। इन चारों पक्षियों के नाम पिण्डाख्य, पिराध, सुपुत्र और सुमुख है। यह कथा संक्षिप्त मार्कंडेय पुराण में है।

महर्षि मार्कण्डेय के निर्देश पर मुनिवर जैमिनि इन पक्षियों के पास गए और उनसे फिर
वही प्रश्न पूछे जो उनके मन में पहले से ही घुमड़ रहे थे। ये पक्षी विंध्याचल पर्वत पर रहते थे।
जैमिनि ने उनसे एक एक कर कई प्रश्न पूछे और पक्षीगण ने उनके उत्तर में अनेक कथाओं का उदाहरण देते हुए उनकी शंकाओं का समाधान किया। ( एक एक करके ये कथाएँ आती हैं , जिनमे पहले सत्य हरिश्चंद्र, मदालसा,अनुसुइया आदि की कथाएँ हैं।)

जैमिनि के प्रश्नो का उत्तर देते हुए पक्षीगण ने बताया कि एक बार ऐसे ही प्रश्न मार्कण्डेय ऋषि से
ब्राह्मण कुमार क्रौष्टुकी ने पूछे थे। मार्कण्डेय  ने उन प्रश्नों का जो उत्तर दिया था, वही प्रसंग पक्षीगण जैमिनि के सामने दुहराने लगे।इनमें ब्रह्मा का जन्म , सृष्टि का प्रारम्भ आदि, गूढ़ विषयों की चर्चा थी। उसके बाद मनु की वंश परंपरा एवं मन्वन्तरों का प्रसंग भी चर्चित होने लगा।  मन्वन्तरों एवं मनु पुत्रों की चर्चा में एक-एक करके १४  मन्वन्तरों ( स्वयंभूव, स्वरोचिष,उत्तम, तमस, दैवत , चाक्षुष , वैवस्वतसावर्णि , दक्ष - सावर्णि,ब्रह्म - सावर्णि, धर्म - सावर्णि, रूद्र - सावर्णि, देव - सावर्णि और इंदु – सावर्णि)  में से आठवें मन्वन्तर सावर्णि तक के प्रकरणों का वर्णन पक्षिराज करते गए।

मार्कण्डेय जी ने क्रौष्टुकी  को मन्वन्तरों की चर्चा के प्रसंग में वह कथा कही, जिसमें वे अपनी पत्नी संज्ञा से इस बात पर रुष्ट हो गए, क्योंकि वह सूर्य के सम्मुख जाते ही , उनके तेज से  भयभीत होकर अपनी आँखें बंद कर लेती। रुष्ट होकर सूर्य ने संज्ञा को उसके मायके भेज दिया। संज्ञा से दो पुत्र हुए थे वैवस्वत तथा यम तथा एक पुत्री यमुना ।  संज्ञा की अनुपस्थिति में छाया-संज्ञा सूर्य के साथ रहने लगी। संज्ञा को भी दो पुत्र तथा एक पुत्री हुए। बड़ा पुत्र वैवस्वत मनु के ही रंग का था, इसलिए उसका नाम सावर्णिक हुआ। यही आठवें मनु के रूप में प्रतिष्ठित हुआ।" दुर्गा सप्तशती " में (जो मार्कण्डेय पुराण का एक महत्वपूर्ण अंग है ) , मार्कण्डेय ऋषि एवं क्रौष्टुकी के संवाद का ही विस्तार है। सप्तशती के प्रारम्भ में मार्कण्डेय ऋषि क्रौष्टुकी  से कहते  - "सूर्य के पुत्र सावर्णिक जो आठवें मनु कहे जाते हैं , उनकी उत्पत्ति की कथा विस्तारपूर्वक कहता हूँ , सुनो.    सूर्यकुमार महाभाग सावर्णि  भगवती महामाया के अनुग्रह से जिस प्रकार मन्वंतर के स्वामी हुए, वही प्रसंग सुनाता हूँ।“

इस प्रकार दुर्गा सप्तशती  का प्रथम अध्याय प्रारम्भ होता है।

प्रथम अध्याय की कथा कल इसी ब्लॉग पर इसके ऊपर पढ़ी जा सकती है|

'रामचरित मानस' का कथा-सार आप 'श्रीदुर्गासप्तशती' के समाप्त होने पर पुनः मंगलवार से पढ़ सकते हैं|                         


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