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Saturday, October 25, 2025

 


यादगारी :१ 

 

कहाँ गए वे दिन !

 

पिछली सदी – कोई ७० साल पहले का समय | जब फ़्लैश बल्ब से फोटोग्राफी होती थी | फोटोग्राफी का शौक इतना बाधा कि मैंने घर में ही अपना एक डार्क रूम भी बना लिया था | पटना के मशहूर त्रिवेदी स्टूडियो के जयंती भाई फोटोग्राफी के मेरे गुरु थे | मेरे पिता को मेरा यह शौक नापसंद था, क्योंकि इससे खर्च का बोझ सीधे उनपर ही पड़ता था | लेकिन इसी शौक का नतीजा है कि आज मेरे पास १०,००० से भी ज्यादा चित्र और पुराने नेगेटिव का एक बड़ा-सा संग्रह पड़ा है, जिनमें सौ-पचास तो चित्र अमूल्य हैं, जो अक्सर मेरे फेसबुक पर आते रहते हैं | उनमें नेहरु, जेपी, कृपलानी, राहुलजी और उस युग के अनेक प्रमुख साहित्यकार, रंगकर्मी, संगीतकार, कलाकार आदि न जाने कितने लोगों के मेरे खींचे चित्र हैं | और उनसे जुडी मेरी अपनी स्मृतियाँ भी हैं |

 

उन्हीं अल्बमों से निकाल कर आज ये चित्र यहाँ प्रस्तुत हैं | कल बनारस की प्रसिद्ध ठुमरी गायिका गिरिजा देवी की चर्चा आई तो ये सारे चित्र स्मृति में उभर आये | अवसर संभवतः बनारस के ही विख्यात तबला-वादक कंठे महाराजजी  की जयंती का था, जिसे एक दिन पटना में हिंदी साहित्य सम्मेलन में और दूसरे दिन लेडी स्टेफेंसन हॉल में मनाया गया था | ये सभी चित्र उसी अवसर के हैं | दो चित्र गिरिजा देवी के हैं, एक डी.वी.पलुस्कर का है, एक हैं लखनऊ के प्रसिद्ध नृत्य-शिरोमणि शम्भु महाराज, और एक – पटना के विलक्षण बांसुरी-वादक फहिमुल्ला | कुछ और चित्र हैं जो अभी मिले नहीं जिनमें रविशंकर है, नृत्य-सम्राज्ञी सितारा और उनकी बहन अलकनंदा, भारतरत्न शहनाई-वादक उस्ताद बिस्मिल्ला, पटना के सियाराम तिवारी, दरभंगा के ध्रुपद-गायक पं. रामचतुर मल्लिक, और उसी श्रेणी के न जाने और कितने कलाकार हैं जिनके मेरे खींचे चित्र मेरे संग्रह में हैं, और उनसे जुडी यादें मेरी स्मृति में | उस श्रंखला के कुछ और चित्र भी ढूंढकर मैं अपने इस पृष्ठ पर या किसी ब्लॉग में आगे इसी श्रृंखला में प्रकाशित करूंगा |

 

इन सभी गुनी कलाकारों के निकट संपर्क में आने का अवसर मुझे अपने बड़े बहनोई श्री वीरेन्द्र नारायण की सांगत में मिला, जो स्वयं एक अच्छे सितार-वादक और शास्त्रीय संगीत के मर्मज्ञ जानकार थे,स्वयं नाटककार ओए अभिनेता भी थे, और बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन में कलाकेन्द्र के संचालक थे जिसके अंतर्गत ये आयोजन हुआ करते थे | (शम्भू महाराज वाले चित्र में वे पीछे बैठे देखे जा सकते हैं|) उनके साथ मैं अक्सर हर वृहस्पतिवार को पटना के परसिद्ध हारमोनियम आचार्य श्याम नारायण सिंह (जो पटना में रेलवे लाइन के किनारे लालजी टोला में रहते थे और), जो गया के सोनी गुरुजी के शिष्य थे, उनके यहाँ संगीत बैठकी में जाकर देर रात तक उच्च शास्त्री संगीत का ज्ञान प्राप्त करता था | (उन्ही दिनों मैं एक और हारमोनियम आचार्य अयोध्या प्रसाद से कलाकेंद्र में बांसुरी भी सीखता था, जो बहुत बाद तक मेरे साथ बनी रही |) लेकिन वह एक अलग अध्याय है मेरी यादगारी का जिसका कुछ अंश मेरे द्वारा संपादित ‘वीरेंद्र नारायण ग्रंथावली

(५ खंड) की भूमिकाओं में पढने को मिलेगा | इसी क्रम में मैंने वीरेन जी से कई संगीतकारों के जीवन-संस्मरण भी लिखवाये थे जो उनकी ग्रंथावली में संकलित हैं | संगीत-सम्बन्धी इस श्रंखला की अगली कड़ी भी कभी आगे यहीं पढ़ी जा सकेगी | अभी के लिए इतना  ही |....        

 

 

 

वीरेंद्रनारायण ग्रंथावली के ये पांच खंड (चित्र देखें) उनके लिखे नाटक, उपन्यास,नाट्यालोचन, संस्मरण, विविध सामग्री के संकलन हैं, जो अनामिका प्रकाशन , दरियागंज, नई दिल्ली से  प्रकाशित और प्राप्य है | उनका नं. है – 9773508632.

 सभी चित्र (C) डा. मंगलमूर्त्ति

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