नेपाल : जलती हरी घास
मंगलमूर्त्ति
उत्तुंग पर्वतों, निस्पंद झीलों और घने
वन-प्रान्तरों की तलहटियों में फैले छोटे-छोटे गाँवों-टोलों वाला प्रशांत प्रदेश –
नेपाल, जो आज विश्व-पटल पर गंभीर उथल-पुथल और घनघोर अराजकता-ग्रसित देशों की कतार
में शामिल दिखाई दे रहा है, आज भी अपने मूल भौगौलिक स्वरूप में एक स्वर्गोपम
प्रदेश ही है, सैलानियों और पर्वतारोहियों का विश्वप्रिय सर्वोच्च गंतव्य ! लेकिन
इधर नेपाल के इतिहास का एक मनोरंजक आत्म-वृत्त पढने पर ज्ञात हुआ कि एक मनोहारी
चित्रपट की तरह लगने वाले इस पर्वत-प्रदेश में इतिहास के कितने पन्ने खून से लाल-लाल
रंगे हैं | ऐश्वर्य में आकंठ डूबे राज-परिवार और सामंतवादी समाज के अमानवीय शोषण-अत्याचार
से पीड़ित नेपाल की बहुत बड़ी बहुसंख्यक जनसंख्या की कई सदियों लम्बी कहानी में खून-खराबे
की कितनी नदियाँ बही हैं, गिनना मुश्किल है |
पूरी तरह सनातन-धर्मी
हिन्दू राष्ट्र होने पर भी – भारत महादेश के माथे पर टिका यह देश, जिसका भूगोल
भारत के राजस्थान राज्य से कुछ ही बड़ा है – नेपाल की लम्बी संतापपूर्ण कहानी से
उससे सटे भारत के उत्तर प्रदेश और बिहार के लोगों ने नेपाल-भ्रमण चाहे जितना किया
हो, वे उसके दुःख और यातनाओं की कथा से लगभग अपरिचित ही रहे हैं | आज जो उपद्रव और
अराजकता नेपाल में दिखाई दे रहे हैं, उसके पीछे अनीति और भ्रष्टाचार में आकंठ डूबे
एक कुशासित देश का एक लम्बा इतिहास फैला हुआ है, जिससे उससे बिलकुल सटे भारतीय
प्रदेशों के लोग बिलकुल बेखबर ही हैं | ध्यान देने पर, राजनीतिक विकास की रोशनी भी अभी भारत के सीमावर्त्ती कई प्रदेशों में लगभग
नहीं ही पहुँच पायी है, जिनके पिछड़ेपन के लहक की धाह भारत को भी लगनी शुरू हो गयी
है | हम संपोषित टुकड़ों में विकास नहीं कर सकते; विकास को सार्वभौमिक-सार्वदेशिक
ही होना होगा |
नेपाल के इतिहास से ही
नहीं,
वहां की संस्कृति और सम्पूर्ण सामाजिक संरचना से भी हमारा परिचय बहुत अपर्याप्त है,
जिन सब की कुछ झलक हमको वहां के आज के साहित्यिक लेखन में दिखाई दे सकती है |
नेपाल की संस्कृति सबसे अधिक भारत की संस्कृति के ही निकट है | वहां का ग्रामीण जीवन भी – भाषा की किंचित भिन्नता को छोड़ दें तो – भारत के
ग्रामीण जीवन से लगभग अविच्छिन्न है | नेपाल का इतिहास जितना क्रूरतापूर्ण और
रक्त-रंजित है – उसके निर्मल शांत प्रदेश
के भूगोल के बिलकुल विपरीत – उतना ही वहां का ग्रामीण-जीवन निष्कलुष और पवित्र है
|
आज मैं आपका परिचय नेपाल
के इतिहास से सम्बद्ध एक अत्यंत सुलिखित आत्म-वृत्त और उसीसे जुडे एक साहित्यिक
संकलन से कराना चाहता हूँ - तीन अंग्रेजी से अपनी अनूदित नेपाली कविताओं के साथ, जिनसे आप जानेंगे अराजकता की
भयावह आग में धधक रहे आज के नेपाल के साहित्यिक लेखन में कविता क्या कह रही है |
माँ
हर सुबह माँ काटती है
हंसुए की धार से
पूरा जोर लगाकर
जिंदगी को घास के एक
मुट्ठे की तरह
और डाल देती है
पशुओं की भूख के सामने
दूध दूहते हुए देखती है
उसकी हर धार में
हंसते बच्चों के उजले
दांत
अचरज में पड़ जाती है
जलते चूल्हे के
इर्द-गिर्द पड़े
बर्त्तनों को अपनी ओर
घूरते देख कर
दुःख उसके सामने आकर
झूम-झूम कर नाचते हैं
जिन्हें वह चुपचाप बस देखती
है
संजोते हुए अपने अनबोले
शब्द
अपनी अविवाहित बेटी के
लिए
चाहती है छिपा ले कपडे
की सलवटों में
उगते हुए चाँद को एक
निवाला
अपने भूख को मिटाने का जिसे
उसके अकेलेपन ने और
बढ़ाया है
बेटे की वह याद जो
परदेस गया है
हजार दिन बनकर खो जाते
हैं
हर बार जब माँ उम्मीदों
को बोती है
चालीस साल की गरीबी की क्यारियों
में
लेकिन ये बीज कभी नहीं
उगने वाले
कहना कठिन है वह कब
आएगा
माँ के सीने में दरकते
हुए
उस बाँध की मरम्मती के
लिए
उसका बेटा जो परदेस गया है
सुस्मिता नेपाल की नेपाली कविता का
अंग्रेजी से अनुवाद © मंगलमूर्त्ति
पानी नल पर खड़ी औरतें
पानी नल पर खड़ी औरतें
पानी से ज्यादा चुलबुली
हैं
उनके होंठ ज्यादा तेज़
चलते हैं
बनिस्पत पानी के उन पनीले
होंठों के
पानी नल पर खड़ी औरतें
अपनी बाल्टी भरती हुई
गाती हैं
असंतोष के गीत
कभी-कभी वे बन जाती हैं
पानी की गिरती लहरीली
धार से भी
ज्यादा ठिठोलीबाज़ और कभी
पोखरे के उस पानी से भी
ज्यादा शांत
पानी नल पर खड़ी औरतें
ज्यादा से ज्यादा सब
पानी जैसी ही हैं
वे अपना ज्यादा समय
पानी की ही तरह
गुनगुनाती रहती हैं
तीर्थ श्रेष्ठ की नेपाली कविता का
अंग्रेजी से अनुवाद © मंगलमूर्त्ति
धान के पौधों की छावं
में
सड़क के किनारे जहां मैं
पहुंचा
धान के हरे-हरे पौधे
लहरा रहे थे
जैसे ही हवा बहती
वे हँसते-खिलखिला पड़ते
कुहनियों से एक-दूसरे
को छेड़ते हुए
जवान लड़कियां
जीवन से लबालब
पांच-सात दिन बाद
वही धान के पौधे लाज
में झुके होते
सुनहले फूलों से माथ
सजाये
नयी दुल्हनों जैसे
जो अपने नये घर आई हैं
कुछ समय बाद
धान के वही पौधे कैसे
झुक गये
फलों से लदे पेड़ों जैसे
पत्नी की तरह नये आगमन
की तैयारी में
आज फिर मैंने देखे धान
के वही पौधे
पुआल में तब्दील हो गये
और मैदान में पसार दिये
गये
प्रतिसारा सयामी की नेपाली कविता
का अंग्रेजी से अनुवाद © मंगलमूर्त्ति
आलेख (C) डा. मंगलमूर्त्ति (ये दोनों
किताबें अमेज़न पर उपलब्ध हैं |) मूल अंग्रेजी कविताओं के लिए आभार मंजुश्री थापा
एवं पेंगुइन इंडिया