
कविता का झरोखा : ३
ओ, प्रेयसि मेरी!
रॉबर्ट बर्न्स
1759 – 1796
रॉबर्ट बर्न्स की कविताएँ स्कॉटलैंड के ठेठ ग्रामीण क्षेत्र
की कविताएँ हैं, जो वहां की आंचलिक भाषा में लिखी गई हैं, जो अंग्रेजी का ही एक क्षेत्रीय
रूप है | और इसीलिए इस मूल प्रेम-गीत में कई आंचलिक शब्द प्रयुक्त हुए हैं, जिनकी
प्रतिच्छाया अनुवाद में नहीं लाई जा सकी है | बर्न्स का पूरा जीवन उसी ग्रामीण
अंचल में एक किसान की तरह बीता था, और उसने अपनी कविताओं में उसी ग्रामीण आंचलिक
जीवन की नैसर्गिक अनुभूतियों को रचा है | वह प्रारम्भ से अपने उस ग्राम्यांचल की
पुरानी परम्पराओं, लोकगीतों और लोक कथाओं का अध्येता रहा, और अपनी कविताओं में
उसने उसी आंचलिक लोक-जीवन की अनुभूतियों और वहां की प्राकृतिक सुषमा को चित्रित किया है | बर्न्स की मृत्यु ३७ वर्ष की
अल्पायु में ही हो गई थी, लेकिन अपने काव्य में स्कॉटलैंड के आंचलिक जीवन के
चितेरा के रूप में बर्न्स को स्कॉटलैंड के ‘राष्ट्र-कवि’ के रूप में मान्यता
प्राप्त है |
बर्न्स की यह कविता ‘मेरी प्रेयसी लाल-लाल गुलाब-सी है’
अंग्रेजी साहित्य में एक सर्वोत्तम प्रणय-गीत के रूप में विख्यात है, और हमारे
यहाँ भी अंग्रेजी की सबसे लोकप्रिय कविताओं में इसकी गिनती होती है | अंग्रेजी के
दो कवि विलियम ब्लेक और रॉबर्ट बर्न्स – रोमांटिक कवियों कीट्स, शेली, बायरन आदि
से पहले की पीढ़ी के कवि माने जाते है
जिनका परवर्त्ती रोमांटिक कवियों पर स्पष्ट प्रभाव देखा जा सकता है | लेकिन जहाँ ब्लेक की कविता बहुधा गूढ़ एवं गहन प्रतीकात्मकता
से बोझिल-सी लगती है, वहीं बर्न्स की कविता
में पारंपरिक ग्राम्य-जीवन की सरलता एवं प्रकृति का सौन्दर्य स्पष्ट
परिलक्षित होता है |
ओ, प्रेयसि मेरी !
ओ, प्रेयसि मेरी, लाल गुलाब की एक कली,
जो नई खिली हो अभी-अभी वसंत में तू,
ओ, प्रेयसि तू, एक मधुर गीत की धुन में ढली,
बिलकुल वैसी ही सुमधुर, अनुपम सुन्दर तू !
मेरी सुन्दरतम प्रियतमे,
तू जितनी सुन्दर,
उतना ही गहरा प्रेम
तुम्हारे प्रति मेरा,
तबतक मैं तुमको प्यार
करूंगा ओ प्रेयसि.
जबतक यह बिलकुल सूख
नहीं जाता सागर |
जबतक अथाह जलराशि
रहेगी सागर में,
जबतक सूरज चट्टानों
को पिघला पाता,
तबतक मैं तुझको प्यार
करूंगा ओ प्रेयसि,
जबतक यह प्राण रहेगा
मेरे अंतर में |
बिछुड़न भी होगी अगर
कभी तुझसे प्रेयसि,
कुछ दिन की ही बिछुड़न
होगी तेरी-मेरी,
मैं आऊँगा फिर वापस
तेरे पास प्रिये,
चलना हो भले हज़ारों
मील मुझे प्रेयसि |
[रॉबर्ट बर्न्स की ‘ओ, मई लव ...’ कविता का अनुवाद एवं टिप्पणी (C) मंगलमूर्त्ति ]

That’s newly sprung in June;
O my Luve's like the melodie
That’s sweetly play'd in tune.
As fair art thou, my bonnie lass,
So deep in luve am I:
And I will luve thee still, my dear,
Till a’ the seas gang dry:
So deep in luve am I:
And I will luve thee still, my dear,
Till a’ the seas gang dry:
Till a’ the seas gang dry, my dear,
And the rocks melt wi’ the sun:
I will luve thee still, my dear,
While the sands o’ life shall run.
And the rocks melt wi’ the sun:
I will luve thee still, my dear,
While the sands o’ life shall run.
And fare thee well, my only Luve
And fare thee well, a while!
And I will come again, my Luve,
Tho’ it were ten thousand mile.
And fare thee well, a while!
And I will come again, my Luve,
Tho’ it were ten thousand mile.
चित्र १. बर्न्स का कॉटेज, आयर शायर, स्कॉटलैंड २. बर्न्स अपनी प्रियतमा के संग | सौजन्य:गूगल